Tuesday, January 1, 2013

कब आता है नया साल लेकर खुशियाँ ।

जव प्रकृति रो रही हो पेड़ों से पत्ते झड़ रहैं हों।पेड़ पोधे फूल रहित हों चारों तरफ वर्फ की मार पड़ रही हो सूर्य भी उदय न हो पा रहे हों।ठण्ड के कारण पशु पक्षी भी चहचहा न रहे हों फिर मानव की तो औकात ही क्या है हाँ वह विना मतलब जबरजस्ती ही कुछ शराव पी लें और नशे में ही खुशी का अनुभव करलें तो उसका तो कुछ भी नही कहा जा सकता हैं।लैकिन प्रकृति ने जो जो त्यौहार बनाऐं है सभी का अपना अपना समय निश्चित किया है।वो भी वैज्ञानिकता के साथ में पर आज का मानव भारत की हर बात को गलत सावित करने की होड़ में सही चीजों ही नही वैज्ञानिकता पर खरी उतरने बाली वातों को भी दर किनार कर रहा है। साल का उत्सब तब ही अच्छा लगता है जब मौसम सुहावना हो फूल खिल रहे हों हर तरफ खुशियाँ हों।और एसा समय होता है चेत्र मास में जवकि फसल पकने को होती है किसान खुश होता है।बागों में कोयल गीत सुनाती है पेड़ो पौधों पर मधुकर व मधुकरी गुँजन करती है चारों तरफ मधुर सुगन्ध वहता है।लो नववर्ष पर पढ़ो यह जानकारी भरा लेख लेखिका रश्मि राय का
भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ-साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है।
आज ...... लोगों को अंग्रेजी साल ने नव वर्ष पर....एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हुए .... और, शराब पीते हुए देख कर मुझे बहुत ही अजीब सा लगा....!
साथ ही.... एक बात मुझे समझ नहीं आती है कि..... आखिर हम और हमारी सरकारें ...... अंग्रेजियत के इतने दीवाने क्यों हैं...????

जबकि..... उपलब्ध साक्ष्य के अनुसार.... ग्रेगेरियन कलेण्डर की काल गणना मात्र दो हजार वर्षों के अति अल्प समय को दर्शाती है.... जबकि यूनान की काल गणना 3580 वर्ष, रोम की 2757 वर्ष यहूदी 5768 वर्ष, मिस्त्र की 28671 वर्ष, पारसी 198875 वर्ष तथा चीन की 96002305 वर्ष पुरानी है।

इन सबसे अलग .....यदि, हम भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के ......पृथ्वी की आयु 1 अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 112 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गयी है।

जिस प्रकार ईस्वी सम्वत् का सम्बन्ध ईसा जगत से है....... उसी प्रकार हिजरी सम्वत् का सम्बन्धमुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है।
परन्तु..... हमारी विक्रमी सम्वत् का सम्बन्ध...... किसी भी धर्म से न हो कर...... सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है।
इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ-साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है।

सिर्फ इतना ही नहीं.....ब्रह्माण्ड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में भी इसका वर्णन है।
नव संवत् यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमशः 45 व 15 में विस्तार से दिया गया ह... जो विश्व में सौर मण्डल के ग्रहों व नक्षत्रों की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग आधारित होते हैं।

इसी वैज्ञानिक आधार के कारण ही..... पाश्चात्य देशों के अंधानुकरण के बावजूद, चाहे बच्चे केगर्भाधान की बात हो, जन्म की बात हो, नामकरण कीबात हो, गृह प्रवेश या व्यापार प्रारम्भ करनेकी बात हो, सभी में हम एक कुशल पंडित के पास जाकर शुभ लग्न व मुहूर्त पूछते हैं। .
और तो और..... देश के बडे से बडे़ सेक्युलर राजनेता भी सत्तासीन होने के लिए सबसे पहले एक अच्छे मुहूर्त का इंतजार करते हैं..... जो किविशुद्ध रूप से विक्रमी संवत् के पंचांग पर आधारित होता है।

क्योंकि...भारतीय मान्यतानुसार कोई भी काम यदि शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ किया जाये तो उसकी सफलता में चार चांद लग जाते हैं।

और... वैसे भी.... भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है.... जो प्रसंग समाज में हर्ष व उल्लास जगाते हुए एक सही दिशा प्रदान करते हैं .... और, उन सभी को हम उत्सव के रूप में मनाते हैं।

फिर क्या.... हम अपनी गुलाम मानसिकता के आगे इतने बेबस हैं कि..... आज आजादी के 65 साल भी हम अपना वैज्ञानिक और सर्वश्रेष्ठ विक्रमी कैलेण्डर नहीं अपना पाए हैं...????

1 comment:

  1. अंग्रेजी नववर्ष के बाद पतझड़ आती है और भारतीय नववर्ष के बाद हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है लेकिन लोग अंग्रेजियत के मौह्जाल से निकले तब हो ना !!

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