Sunday, December 2, 2012

गऊ माता का ममत्व-गायों का वर्तमान दुःख

आज गाय नामक प्राणी जो आपको व मुझे सबको अपना दूध आपकी अपनी माँ से ज्यादा ममत्व से पिलाती है कि बच्चे की मां के बीमार हो जाने पर डाक्टर लोग मां का दूध पीने की मनाही कर देते हैं किंतु गाय के दूध पर ये शर्ते लागू नही होती मतलब यह कि गाय की बीमारी का उसके दूध पर कोई असर नही होता है सो उसका दूध बीमार होने पर भी निरापद ही है एसी गाय पर आजकलआफत ही आ गई है।पहले तो भारत जब इस्लामिक आक्रान्ताओं का गुलाम था तब तो मुसलमान गायों की ह्त्या सरेराह करते रहते थे और जब अग्रेज हुकूमत आयी तो फिर ईसाई व मुसलमान दो दुस्मन हो गये।अब जब भारत आजाद हो गया है तब भी गाय माँ की त्रासदी आज भी कम नही हुयी है अपितु और भी बढ़ गयी है।पहले हिन्दु कम से कम घर में रखकर पालता तो था वो भी मृत्युपर्यन् किन्तु आज तो गायों का सबसे बडा़ दुस्मन अगर कोई है तो वह है हिन्दु पहले दो दुस्मन थे अब तीन हो गये हैं।आज हिन्दु अपनी गाय को जब तक पालता है जब तक कि वो दूध देती है और जैसे ही गाय ने दूध देना बन्द कर दिया तुरन्त उसे छोड़ आऐंगे।वह कहीं भी जाए चाहैं उसे कसाई ही ले जाऐं कोई चिन्ता नही है दूध पिलाने की सजा मिलती है गऊ माता को।इससे समाज में एक नयी समस्या पैदा हो गयी है कि आज आवारा गायों हाँ समाज उसे आवारा ही तो कहता है लैकिन बास्तव में वें वैचारी गौपाल के देश में भी अनाथ ही तो हैं।नारे बाजी खूब की जाती है बहुत सी गऊ शालाऐं खुली हैं उनके रक्षक या कहैं कि मेनेजमेंट केवल उनकी आय से अपना फायदा कर रहा है।वे गायों को नही लेते या फिर गाय को गऊशाला लाने पर दान की लम्बी लिस्ट पकड़ा दी जाती है और आदमी चुपचाप कहीं भी गायों को छोड़ जाता है।जिससे खेती करने बाले किसान भी परेशान है गाय एक जगह वैठकर जितना खाती है उससे कहीं ज्यादा तो वह खेतों में घूमकर नुकसान कर देती हैं।सो किसान भी उनके दुश्मन हो गये हैं।मैंने ऐसे ऐसे हिन्दु किसान अपने आसपास देखे हैं जो गायों पर तिजाव ,भाले ,वल्लम,और कई बार जहर तक का प्रयोग करके भी अपने आप को हिन्दु कहने में शर्म महसूस नही करते।चलों कहीं तक बाढ़ लगा देना तो में ठीक भी मानता हूँ लैकिन यह भी इस समस्या का समाधान नही है।मैने कुछ किसानो को गायों की जासूसी करते और कसाईयों को बताते पकड़ा है तथा पुलिस को भी पकड़वाया है किन्तु हमारी कहीं नेता लोग भी सहायता नही करते।हमने कसाईयों को जो बैल ले जाते हैं से  वैल लेकर पशुपालकों को दिये हैं।कई बार तो हम पर हमला भई हो चुका है किन्तु हम हैं कि मानते ही नही हैं।तो भाई गायों की जो तस्करी हो रही है ज्यादा तर उनमें हिन्दू पुलिसबाले हिन्दु किसान हिन्दु नेता ही सहयोग करते हैं वे सपा,बसपा कांग्रेस आदि दलों में उच्च स्तर पर रहते हैं तथा अपनी पहुँच का फायदा उठाकर खूब नोट कमा रहै हैं जबकि कई बार तो हम लोग भी गौपालकों को ही कसाई का एजैन्ट समझने की भूल कर देते हैं जिससे कई बार अनर्थ भी हो जाता है।तो भाईयो जब तक प्रत्येक हिन्दु गाय के मह्त्व को नही समझेगा तब तक बात नही बनने वाली।गायों की समस्या को मुक्त करने के लिए पहले तो गायों की नस्ल की भी चिन्ता करनी पढ़ेगी।पहले भारत की लोमड़ी प्रधान मंत्री जिसे कुछ लोग विना मतलब ही शैरनी या दुर्गा कहकर संबोधित करते हैं ने आपरेशन फ्लड चलाकर भारत की गायों को विदेशी साड़ो से क्रास कराकर हमारे गौधन की रेड़ मार दी है यह भी हिन्दु धर्म के सत्या नाश का ही एक नया कांग्रेसी प्रयोग था जिसमें वे सफल हुये ये लोग छदम हिन्दु थे जो केवल दिखावे के लिए हिन्दु थे बाकी वास्तब में तो यह गयासुद्दीन गाजी जो बहादुर शाह जफर के यहाँ नगर कोतबाल था की पड़पोती ही थी जिसे भारतवासियों को वेबकूफ बनाने के लिए गंगाधर व नहेरु नाम रख लिया था जरा कोई काश्मीरी बताए कि वहाँ कितने ब्राह्मण नहेरु गोत्र लगाते हैं यदि लगाते हैं तो बताए जिससे हम अपनी गलती सुधारें नही तो हमारी बात को सहयोग करें जिससे इन कालनेमियों की पोल खुल जाए तथा जनता इनके इन रिस्ते दारों की जुतियाय़ी करे।और भारत अगले षडयंत्रो से बच जाए।आगे मेरे मित्र श्री रनधीर सिंह पानीपतिया जी ने एक कहानी शेयर की है जो गाय की ममत्व पूर्ण न्याय की कहानी है। कृपया इसे पढ़े

एक बार की बात है इन्दौर नगर के किसी मार्ग के किनारे एक गाय अपने बछड़े के साथ खड़ी थी, तभी देवी अहिल्याबाई के पुत्र मालोजीराव अपने रथ पर सवार होकर गुजरे । मालोजीरा व बचपन से ही बेहद द्यारारती व उच्छृंखल प्रवृत्ति के थे । राह चलते लोगों को परेशान करने में उन्हें विशेष आंनद आता था । गाय का बछड़ा अकस्मात उछलकर उनके रथ के सामने आ गया । गाय भी उसके पीछे दौड़ी पर तब तक मालोजी का रथ बछड़े के ऊपर से निकाल चुका था । रथ अपने पहिये से बछड़े को कुचलता हुआ आगे निकल गया था ।  गाय बहुत देर तक अपने ...
एक बार की बात है इन्दौर नगर के किसी मार्ग के किनारे एक गाय अपने बछड़े के साथ खड़ी थी, तभी देवी अहिल्याबाई के पुत्र मालोजीराव अपने रथ पर सवार होकर गुजरे । मालोजीरा व बचपन से ही बेहद द्यारारती व उच्छृंखल प्रवृत्ति के थे । राह चलते लोगों को परेशान करने में उन्हें विशेष आंनद आता था । गाय का बछड़ा अकस्मात उछलकर उनके रथ के सामने आ गया । गाय भी उसके पीछे दौड़ी पर तब तक मालोजी का रथ बछड़े के ऊपर से निकाल चुका था । रथ अपने पहिये से बछड़े को कुचलता हुआ आगे निकल गया था ।

गाय बहुत देर तक अपने पुत्र की मृत्यु पर शोक मनाती रही । तत्पष्चात उठकर देवी अहिल्याबाई के दरबार के बाहर टंगे उस घण्टे के पास जा पहुँची, जिसे अहिल्याबाई ने प्राचीन राज परम्परा के अनुसार त्वरित न्याय हेतु विशेष रूप से लगवाया था।

अर्थात्‌ जिसे भी न्याय की जरूरत होती,वह जाकर उस घन्टें को बजा देता था। जसके बाद तुरन्त दरबार लगता तुरन्त न्याय मिलता । घन्टें की आवाज सुनकर देवी अहिल्याबाई ने ऊपर से एक विचित्र दृश्य देखा कि एक गाय न्याय का घन्टा बजा रही है ।

देवी ने तुरन्त प्रहरी को आदेश दिया कि गाय के मालिक को दरबार में हाजिर किया जाये। कुछ देर बाद गाय का मालिक हाथ जोड़ कर दरबार में खड़ा था। देवी अहिल्याबाई ने उससे कहा कि '' आज तुम्हारी गाय ने स्वंय आकर न्याय की गुहार की है । जरूर तुम गो माता को समय पर चारा पानी नही देते होगें। '' उस व्यक्ति ने हाथ जोड़कर कहा कि माते श्री ऐसी कोई बात नही है । गोमाता अन्याय की शिकार तो हुई है ,परन्तु उसका कारण में नही कोई ओर है, उनका नाम बताने में मुझे प्राणो का भय है ।'' देवी अहिल्या ने कहा कि अपराधी जो कोई भी है उसका नाम निडर होकर बताओं ,तुम्हे हम अभय -दान देते है।

'' तब उस व्यक्ति ने पूरी वस्तु:स्थित कह सुनायी । अपने पुत्र को अपराधी जानकर देवी अहिल्याबाई तनिक भी विचलीत नही हुई। और फिर गोमाता स्वयं उनके दरबार में न्याय की गुहार लगाने आयी थी। उन्होने तुरन्त मालोजी की पत्नी मेनावाई को दरबार में बुलाया यदि कोई व्यक्ति किसी माता के पुत्र की हत्या कर दें ,तो उसे क्या दण्ड मिलना चाहिए ? मालो जी की पत्नी ने कहा कि ÷ जिस प्रकार से हत्या हुई, उसी प्रकार उसे भी प्राण-दण्ड मिलना चाहिए। देवी अहिल्याने तुरन्त मालोजी राव का प्राण-दण्ड सुनाते हुए उन्हें उसी स्थान पर हाथ -पैर बाँधकर उसी अवस्था में मार्ग पर डाल दिया गया। रथ के सारथी को देवी ने आदेश दिया ,पर सारथी ने हाथ जोड़कर कहा '' मातेश्री ,मालोजी राजकुल के एकमात्र कुल दीपक है। आप चाहें तो मुझे प्राण -दण्ड दे दे,किन्तु मे उनके प्राण नही ले सकता ।'' तब देवी अहिल्याबाई स्वंय रथ पर सवार हुई और मालोजी की ओर रथ को तेजी से दोड़ाया, तभी अचानक एक अप्रत्याशित घटना हुई।रथ निकट आते ही फरियादी गोमाता रथ निकट आ कर खड़ी हो गयी । गोमाता को हटाकर देवी ने फिर एक बार रथ दौड़ाया , फिर गोमाता रथ के सामने आ खड़ी हो गयी। सारा जन समुदाय गोमाता और उनके ममत्व की जय जयकार कर उठा। देवी अहिल्या की आँखो से भी अश्रुधारा बह निकलीं । गोमाता ने स्वंय का पुत्र खोकर भी उसके हत्यारे के प्राण ममता के वशीभूत होकर बचाये।

जिस स्थान पर गोमाता आड़ी खड़ी हुई थी, वही स्थान आज इन्दौर में ( राजबाड़ा के पास) '' आड़ा बाजार के नाम से जाना जाता है।''

1 comment:

  1. आपका लेख सत्यता से परिपूर्ण है हाँ कुछ आशा की किरण गौशालाओं की और से जरुर दिखाई दे रही है जिनकी संख्या और उनमे रहने वाले गौधन में लगातार बढोत्तरी हो रही है और ये सच्चाई है कि गौमाता की इस दुर्दशा के लिए हिंदू ही जिम्मेदार है जो अपने घरों में तीन चार भेंसे तो पाल सकते हैं लेकिन एक भी गौमाता को नहीं !!!

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