Friday, October 26, 2012

कागज के रावण का अंत

कल विजयादसमी का पर्व धूम धाम से मनाया गया।किन्तु मैं अपने फेसबुक एकाउण्ट को खोलकर वैठा रहा तो देखता हुँ कि मैं ही इण्टर नेट पर वैठा अकेला बेवकूफ नही हूँ और भी बहुत से लोग लगे हुए हैं तो दिल को तसल्ली हुयी कि भाई जिस काम को अनेकों लोग कर रहैं हो वह वेबकूफी भरा तो नही हो सकता हो सकता है गलत हो तो शायद भारत की इस ईस्ट ईण्डिया कम्पनी की मालकिन श्री मती सोनिया गाँधी जिन्हैं इनकी वास्तविक सुसराली नाम सोनिया खाँदी जी हाँ यही नाम है जो सोनियाँ जी  के सुसर श्री मान नहेरु दामाद सर्व श्री फिरोज खान ने गाँधी जी की बात को 60% मानते हुये अपनी माँ के नाम पर रख लिया था क्योंकि शादी से पहले उनकी माँ का य़ही सर नेम था जो उनके मुस्लिम पिता के कारण बदल कर खान हो गया था। खेर इस बात की चर्चा बाद में करेगें कि यह क्या हिस्ट्री है लेकिन आज के मुद्दे की बात। हाँ तो मैं किस जगह था कि मालकिन सोनिया गाँधी औऱ उनके भारतीय ऱावण ने कागज के रावण को फूँक दिया । भाइयो ये मैं नही कह रहा मैने तो फेसवुक पर देखा कि अनेको लोग आज विजयादशमी के पावन पर्व पर उदास होकर वैठे हैं मैने पूछा कि रावण देखने नही जाना तो कई बोले कि क्या जाए यार वहाँ राम तो हैं ही नही क्योंकि सरकार ने पहले  ही घोषित कर दिया था कि राम कभी हुआ ही नही था।अब यार कागज के रावण को मारने के लिए एक हाड़ मांस का रावण सुमाली की जगह सोनिया के साथ वेचारे उस कागज के निरीह से रावण को मारने आ रहे हैं जिस रावण ने कोई सीता हरी ही नही है औऱ हरे कहाँ से रावण के राज में सीता कहाँ से आए औऱ अगर है भी तो वेचारा कागज का रावण इस हाड़ मांस के रावण के डर के मारे रामलीला ग्राउंड से वाहर ही नही निकला होगा कि यार यहाँ कोई सीता मिले न मिले खामखा वीमारी क्योंकि सीता तो मिलने से रही इस रावण राज में जिधर निकलुगाँ वहाँ वन की जगह सड़क भटकती शूपर्णखा अवश्य मिल जाएंगी क्योंकि पहले तो सीता है ही अत्यधिक कम क्योंकि किसी से भूल से कह भी दिया कि तू तो सीता है सावित्री है तो तुरन्त सुनने को मिलेगा कि होगी तेरी बहिन सीता सावित्री मुझे कह रहा है सीता सावित्री शर्म नही आती एसी वात कहने मे़ और जो कह दिया है प्यारी तुम तो विल्कुल एसी लग रही हो जैसी विपासा वसु या और कोई सेक्सी गर्ल का नाम ले दो तो तुम्हैं वाह वाही मिलेगी तो रावण ने सोचा कि क्यों अपनी वहिनो को ही छेड़ा जाए इसलिए बैचारा रामलीला ग्राउण्ड  से ही नही निकला।पर उसे क्या पता था कि कलियुग में रावण ही रावण का दुस्मन वन जाता है।उसे तो अपने समय का पता था कि उसने आवाज दी खर दुषण को और वो जी महाराज करते चले आऐ।उसने आवाज दी कुम्भकर्ण को तो वो भागा चला आए जागते ही उनीदा उनीदा ही कि भाई की आवाज है उसे क्या पता बैचारे को कि अब भाई ही भाई का दुश्मन न. 1 है मु्म्बई तो इस मामले में सबसे आगे है जहाँ एक भाई दुसरे को देख ही नही सकता सैकड़ो भाई इसी काम में प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में मारे जाते है लैकिन भला हो भाई पैदा करने वाले आजम गढ़ का जहाँ की धरती इतने भाई पैदा करती है हर साल कि फौज ही कम नही होती रावण भी यह देख कर दुवका वैठा था सोच रहा था कि मैरे तो एक  लाख पूत औऱ सवा लाख पूतों को मेरे दुश्मन राम ने यू ही मार दिया था किन्तु ये भाईयो की फौज के तो हजारों दुश्मन हैं फिर भी खत्म नही होती क्या कारण है तो उसे क्या पता था कि अनबरत भाई जनने की नर्स काग्रेश का इस भारत पर लगातार 60 -70 वर्ष सा शासन चल रहा है।उस रावण का कैवल एक दोष कि उसने केवल अपनी नकटी वहिन की बातों मे आकर सीता का हरण कर लिया था लैकिन शायद अपनी प्रजा को विल्कुल भी दुखी नही किया था लैकिन यह रावण तो किसी को चैन ही नही लेने देता रात को सोते है कि भगवान भला करना सवेरे उठने से पहले खवरिया सूचना देता कि कि आज तुम लोगों के सामाजिक घर से 50000 करोड़ का घोटाला हो गया पेपर पड़ा तो मालूम हुआ कि किसने किया पता पड़ा कि जलेवी की रखवाली पर रखी कुतिया ही सारी जलेवी खा गयी है।दूसरे दिन फिर भोर हुयी खवरिया आया बता गया कि कल से दोगुनी लूट हुयी मतलब 1लाख करोड़ की अरे भाई अव क्या होगा अव कुछ नही मत्री मंडल के लोग  वैठेगे यानि की कुतियाओं का दरवार लगेगा और पता लगाएगा कि जलेवी कौन- 2 ने खाली है।और हाँ कोई बाहर जाकर नही कहेगा कि केवल इसी ने खाई हैं। क्योंकि अब की से नम्वर तेरा ही है यार तू क्यों परेशान हो रही है मेडम हैं न ।और हाँ कोई जलेवी वाला कुछ कहै तो सबको एक साथ भौकना है जिससे आगे से कुछ कहै ही नही ।और ये बावा विना मतलब के खाली पीली यार हमारी जलेवी की तरफ वड़ी रखवाली की नजर से देखता है सब मिल कर इसका काम तमाम क र दो इससे पूछों तेरे इस हकीम खाने को कहाँ से माल मिला है यह सही भी है तो क्या हुआ जनता थोड़ै ही समझती है क्या है हमारी औऱ भी अनेकों आ ही जाएगे और जो आ जाए उसे भी थोड़ी सी खुशवू सुघा दो जिससे वो मरे नही वेहोस रहे औऱ हम माल पर माल खातै रहै औऱ वो केवल हमारे पीछे दुम हिलाता देखता रहै।और जव भी असली मालिक कुछ वोले इन्हैं अड़ा दो हाथ मे तलवार लेकर धर्म निरपेक्षता की क्योंकि यही तलवार है जो इन जलेवी के  असली मालिक से वचा सकती है और यह जलेवी कामालिक ही कौन सा वहुत होसियार है जो जातिवाद की हवा हमने घुमाई नही कि इनमें से अनेक हमार चारों तरफ आ जाएगै  पूछ  हिलाते हुए ।और जलेवी फलेवी भूल जाएगै ।
अरे रावण के बारे में क्या स्टेप घूमा यह तो भूल ही गये।
तो वैचारा सुमाली वाला रावण सोनिया वाले रावण के सामने वोना पड़ गया क्योंकि उसकी सारी सेना तो त्रेता में ही राम ने मार दी थी औऱ मार दिया था उसको भी किन्तु पहले राम से दुश्मनी थी तो राम जी हर वार आते औऱ रावण का मन भर जाता कि यार इस प्रेत योनि में केवल एक काम तो कर ही लू कि अपने  शत्रु राम से युद्ध करके मन की भड़ास तो निका ल ही दूगाँ।सो वैचारा आ गया यहाँ मरने को अपने से भी विशाल रावण से लडने पता ही नही था कि अब राज्य बदल गया है।औऱ राम तो पैदा ही नही हुआ ही नही तो लड़ने कैसे आएगा ।और अबकी बार उसे लड़ना पड़ा हाड़ मांस वाले अपने से भी ज्या दा ताकत वर रावण से तो कैसे करे रावण।अतः मन मारकर वैठ गया है कि कैसे लड़ाई होगी।वैचारा सुवह से शामतक परेशान रहा कि यार कैसे युद्द होगा
वह राम तो बात दुश्मनी के भी बात मानता था देखा कि रावण का तीर मिसकर गया है तो राम तीर नही छोड़ते किन्तु जव मैने युद्ध के नियम नही माने थे तो यार कैसे यह नया रावण एसामुझे कर ने देगा।एक वार उसके दिमाग में आया कि चल ठीक है यार दोस्ती कर लेंगे लैकिन कलियुग के दोस्तो की कहानी सुन कर फिर उदास वैठ  गया किन्तु लोगो के समझाने पर युद्ध को तैयार हो गया  लैकिन उहापोह की स्थिति में शाम है गयी कि राम का रुप निभाने के लिए प्रधान मंत्री जी ही आ गये वैचारा कागज का रावण क्या करता मरता क्या न करता उसने नमस्कार किया लैकिन वेकार क्योकि अगर साम्राज्य वचाए रखना है इन छोटे पुराने जमाने के चोरों को तो ठिकाने लगाना ही पड़ता है तो उस जमाने का एक स्त्री की चोरी करने वाला रावण क्या खाकर ओलम्पिक खेलों सामान किराए पर लेकर ,  स्पेक्ट्रम की चोरी करेके या कोयला घोटाला करके हमारा सहयोग कर सकता है औऱ फिर जो काम का नही उसे रखने से क्या फायदा सो नये हाड़मास के रावण ने नये सुमाली के साथ पुराने रावण के सारे अंग गुस्से में यो फूक दिये औऱ कहा कि यह कलयुग है इसमे कोई मित्र  या शत्रु  नही होता है।और वड़े कामों के लिए (डकेती )छोटे लोगों का वलिदान करना ही पढ़ता है ।और रावण तुम तो गुजरे दिनों के रावण होगे आज तो तुम्हारा हमासे कोई मुकावला है भी नही  और एक 31 तीरों बाला तीर चला दिया और कागज का रावण फुक गया।






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