Saturday, October 20, 2012

धर्म क्या है व क्या है सम्प्रदाय और क्या है साम्प्रदायिकता


आजकल हम राजनैतिक हल्को में यह बात सुनते रहते है कि साम्प्रदायिकों का साथ नही देना है।फलां दल साम्प्रदायिक है फलां दल धर्म निरपेक्ष है।तो बार बार इस शब्द कोसु्नने के बाद मैने अनेक लोगों से चर्चा की अनेको कितावों का अध्ययन किया ओर जो जाना सो आपसे बाँट रहा हूँ अगर आपको और भी जानकारी है तो देने का प्रयास करना।ज्ञान वाँटने से बढता है।
धर्म हमें उच्चादर्शों के प्रति श्रद्धावान बनाता है।प्रेरणा प्रदान करता है कि हमारा हृदय अहंकार से नितान्त दूर रहे या कहे कि अहंशून्य हो जहाँ घमण्ड का  विल्कुल भी स्थान न हो और जहाँ अहं नही होगा वहाँ विवाद की  गुंजाइस नही होगी।वहाँ सरलता व सज्जनता होगी सरलता व सज्जनता का ठोंग नही होगा।जहाँ सरलता होगी वहीं सात्विकता पनपेगी और एसे माहौल में ही दैवीय विभूतियाँ जन्म लेती हैं। जो जितने अंशो में इस सरलता सात्विकता को धारण करता है वह उसी अनुपात में धार्मिक है। इसी धार्मिकता का आचरण ही धर्म कहलाता है।यह धर्म हमें देवत्व की ओर ले चलता है।धर्म हमे उदार बनाता है और आत्म विस्तार का उपदेश देता है।
संत नामदेव का नाम शायद आपने सुना होगा एक बार उन्होने अपने खाने के लिए रोटी बनायी कुत्ता आया और रोटी इनके हाथ से छीन कर ले गया।अब सन्त नामदेव उसके पीछे देसी घी का कटोरा लेकर भाग रहे हैं और वे उसमें देख रहै है परम पिता परमात्मा का रुप कह रहै है  ”प्रभु रुखी रोटी न खाऔ थोड़ा घी भी लेते जाओ।” ऐसी सरलता ऐसा विश्वास कि यह कुत्ता नही प्रभु का ही तो रुप है। सम्पूर्ण समाज को प्रभु का रुप मानकर देखने वाला यह धर्म ही तो है। धर्म हमे किसी का विरोधी नही बनाता है वह विरोधी है तो केवल अन्याय का धर्म हमें डरपोक भी नही बनाता तभी तो उस वनवासी राम ने जगंली लोगों व जानवरों को एकत्र कर अन्याय के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया पता था कि हम पर साधन भी नही हैं कहाँ वनवासी वन वन भटकने वाला  मैं राम कहाँ लंका की सत्ता सम्पन्न ही नही अनेकों उपनिवेशों का मालिक रावण ।कहाँ केवल आयुधों के सरल से जानकार राम कहाँ तत्कालीन आयुध प्रणाली का प्रवल साधक व प्रवल प्रयोक्ता ही नही यह कहना भी अतिश्योक्ति नही होगी कि प्रवल उत्पादक रावण जिसे तत्कालीन समय के आयुध प्रदान कर्ता ब्रह्म, विष्णु व महेश तीनों ही शक्तियों से वरदान मिला हुआ था और जिस रावण से धनपति कुबेर, स्वर्गपति इन्द्र व मृत्यु का देवता काल भी डरते थे एसे रावण से टक्कर लेना आसान नही था शायद अगर वह व्यक्ति धर्म का साधक न रहा होता तो शायद सोच सोच कर ही मर जाता।इसके अलावा अनेकों उदा. धर्म मार्ग पर चलने वालो के मिल जाएगें।
धर्म की शिक्षा है आत्मवत सर्वभूतेषु एवं वसुधैव कुटुम्वकम इसी कारण कोई महान पुरुष अपने आप को जाति विरादरी या भौगोलिक सीमाओं मे नही बँधा होता है।

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