जिस हिन्दू ने नभ में जाकर, नक्षत्रो को दी है संज्ञा.
जिसने हिमगिरी का वक्ष चीर, भू को दी है पावन गंगा.
जिसने सागर की छाती पर,पाषाणों को तैराया है.
हर वर्तमान की पीड़ा को, जिसने इतिहास बनाया है.
जिसके आर्यों ने उदघोष किया,"कृण्वन्तो विश्वमार्यम" का.
जिसका गौरव कम कर न सकी, रावण की स्वर्णमयी लंका.
जिसके यज्ञो का एक हव्य, सौ-सौ पुत्रोँ का जनक रहा.
जिसके आँगन में भयाक्रांत,धनपति बरसाता कनक रहा.
जिसके पावन बलिष्ठ तन की, रचना तन दे दधीच ने की.
राघव ने वन-वन भटक-भटक, जिस तन में प्राणप्रतिष्ठा की.
जौहर कुंडो में कूद-कूद , सतियो ने जिसको दिया सत्व.
ऋषियों ऋषि पुत्रों ने जिसमे, चिर बलिदानी भर दिया तत्व.
वह शाश्वत हिन्दू जीवन क्या, स्मरणीय मात्र रह जाएगा?
इसकी पावन गंगा का जल, क्या नालों में बह जाएगा?
इसके गंगाधर शिवशंकर, क्या ले समाधि सो जायेंगे?
इसके पुष्कर, इसके प्रयाग, क्या गर्त मात्र रह जायेंगे?
यदि तुम ऐसा नहीं चाहते,तो फिर तुमको जगना होगा.
हिन्दू राष्ट्र का बिगुल बजाकर, दानव दलको दलना होगा.
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