Tuesday, October 9, 2012

"वन्दे मातरम्" गीत में विवाद की बात कहाँ है?



राष्ट्र कवि बंकिम चन्द्र चटर्जी ने यह गीत भारतीय समाज को एकजुट करने के उद्देश्य से लिखा था।जिसका भावार्थ निम्न है।यह गीत जिसके प्रारम्भिक शब्दों पर भारत की स्वाधीनता का युद्ध लड़ा गया और  निश्चित जीत भी प्राप्त की गयी उसी गीत का स्वाधीन भारत और उसके नीति नियंताओ द्वारा बारम्बार कहा जाना कि अगर कोई इस गीत को गाना चाहे तो गाये न गाना चाहे तो कोई बात नही कोई अच्छी बात नही है हो सकता है कल कोई सरकार यह भी  घोषणा कर दे कि भाई तुम भारतीय ध्वज लहराना चाहो तो लहराओ नही तो जो अच्छा लगे उसे लहरा लो।
            मैने इस कारण से कि आखिर वन्देमातरम में एसी कौन सी बात है जिस पर हाय तौवा होती है क्या अन्य लोग अपनी माँ को माँ नही मानते और पिता को पिता नही मानने वो हमे भोजन पानी हमारा भरण पोषण व हमारी सुरक्षा का ही तो कार्य करते है और सम्मिलित रुप से क्या यही कार्य हमारा देश नही करता अगर नही तो फिर आप इस देश में रहने के हकदार नही है क्योंकि जब आपका पेट यहाँ के भोजन से नही भरता यहाँ की वायु आपको नही जिलाती तो फिर क्यों इस देश में रहते हो चले जाओ वहाँ जहाँ से तुम्हे सब साधन प्राप्त होते हैं अगर हाँ तो फिर इस बात को मानो कि वन्दे मातरम सही है और उसे गाओ।

 वंदे मातरम्।सुजलां सुफलां मलयज् शीतलाम्शस्यश्यामलां मातरम्।शुभ्र ज्योत्सनां-पुलकित यामिनीम्,फुल्लकुसुमित-द्रुमदलशोभिनीम्,सुहासिनी सुमधुरभाषणीम्सुखदां वरदां मातरम्।।वन्दे मातरम्----------------सप्तकोटिकण्ठ कल कल निनाद कराले,द्विसप्तकोटि भुजैधृत खरकरवाले,अबला केनो माँ तुमि एतो बले!बहुबलधारिणीम् नमामि तारणीम् ,रिपुदलवारिणीम् मातरम्।। वन्दे मातरम्----------------तुमि विद्या,तुमि धर्म,तुमि हरि,तुमि कर्म,त्वं हि प्राणः शरीरे।बाहुते तुमि माँ शक्ति,हृदये तुमि माँ भक्ति,तोमारई प्रतिमा गड़ी मन्दिरे मन्दिरे।त्वं हि दुर्गा दशप्रहरण धारिणी,कमला कमल दल विहारिणी,वाणी विद्या दायनी नमामि त्वांनमामि कमलां,अमलां,अतुलाम्,सुजलां,सुफलां,मातरम्।।वन्दे मातरम्----------------श्यामलां,सरलां,सुस्मितां,भूषिताम्धरणी,भरणी मातरम्।।वन्दे मातरम्----------------

अर्थ- हे धरती माता, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।जहाँ स्वच्छ जल दायनी नदियाँ बहती हैं।जहाँ रसदार फलों से लदे वृक्ष हैं,चन्दन जैसी सुगंध से युक्त हवाऐं जहाँ बहती हैं।और जो धरती सघन धानों से भरी होने के कारण काली दिखाई देती है।एसी धरती माँ को मैं प्रणाम करता हूँ।
जहाँ रात्रि में श्वेत चाँदनी छिटक कर पुलकित होती है अर्थात जिस चाँदनी की उपस्थिति में यहाँ के रहने वाले पुलकित होते हैं।वहाँ खिले हुए पुष्प औऱ घने पत्तों वाले वृछ शोभायमान होते हैं।जो सुन्दर औऱ मधुरवाणी वोलने वाली हैं सदैव सुख देने वाली तथा वर देने वाली हैं ऐसी धरती माता मैं तुम्हैं प्रणाम करता हूँ।
यहाँ रहने वाले सत्तरकरोड़ कण्ठ जहाँ भारत रुपी नदी अर्थात तुझमें प्रसन्नता पूर्वक तेरी धारा के समान कलकल करते हुए रहते हैं तो कभी अपनी दोनो भुजाओं अर्थात 140 करोड़ हाथों मे तलवार लेकर माँ चण्डी के समान दुष्ट पर धावा बोलने को तैयार रहते हैं ऐसी माता तुझे कौन कहता है कि तू अबला है।अपार बल वाली माता मैं तुम्हैं प्रणाम करता हूँ।आप सभी दुखों से तारने वाली हैं।मुक्ति देने वाली माता है।शत्रुओं के समूह से लड़ने की शक्ति देने वाली माता मैं आपको वारम्बार प्रणाम करता हूँ।
तुम्ही विद्या की देवी सरस्वती हो, तुम्ही ईश्वर हो तुम्ही कर्म भी तुम ही हो,तुम ही शरीर में प्राण हो।
हे माँ!तुम ही भुजाओं की शक्ति व हृदय की भक्ति हो।
तुम्हारी ही प्रतिमा मन्दिर-2 में विराजमान है।तुम ही दशों भुजाओं मे खडग धारण किये दुर्गा माँ हो,तुम ही कमल की पंखुड़ियों पर विराजमान माता लक्ष्मी हो।तुम ही विद्या दान करने वाली माँ सरस्वती हो।मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
लक्ष्मी के समान,स्वच्छ,अतुलनीय बल धारण करने वाली माता मैं आपको प्रणाम करता हूँ।जहाँ स्वच्छ जल से युक्त नदियाँ बहती हैं,यहाँ की धरती फलदार वृक्षों से युक्त है।
हे माता! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
       सघन धान से युक्त श्यामल या काले रंग की,सरल,सुखद मुस्कान युक्त,आभूषण से सुसज्जित,सभी का भरण पोषण करने वाली माता मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
               हे धरती माता!मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने सच ही कहा है कि-

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,जीती जागती राष्ट्र माता है।जिसका मस्तक है हिमालय चोटी गोरीशंकर,कश्मीर किरीट है तथा पंजाब व बंगाल कंधे हैं। विन्ध्याचल पर्वत इसकी कमर है तो नर्मदा करघनी के समान इसको लपेटे हुऐ है।पूर्वी व पश्चिमी घाट दोनो इसकी जंघाऐं हैं।जबकि कन्याकुमारी के चरण हैं।सागर इसके पग पखारता है। पावस के काले काले मेघ इसके बालों जैसे हैं।जिसकी आरती कोई सामान्य मानव नही सूर्य व चन्द्र उतारते हैं।यह वन्दन की भूमि अभिनन्दन करने के योग्य है।मानो साक्षात माता दुर्गा ही माँ भारती का रुप लेकर विश्व को अपना दर्शन कराने के लिए भारत माँ के रुप में प्रकट हो गयी हों।इसलिए आज का धर्म, पूजा का मंत्र ,प्रार्थना हवन का तर्पण सब माँ भारती की पूजा होना चाहिए।इसका कंकर कंकर शंकर व इसका बिन्दु-2 गंगाजल है।





                                   

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