Sunday, October 28, 2012

बँटवारे के समय धर्म के नाम पर पाकिस्तान व भारत का धर्मनिरपेक्ष बनाकर नहेरु ने अपने दीन की सेवा की थी


भारत का पूर्व इतिहास पिछले 1100-1200 वर्षों को अगर छोड़ दिया जाए तो एक गौरव शाली इतिहास रहा है।और इस गुलामी के काल में भी अनगिनित पुष्प भारत माँ ने जाए है  जिनके बिना भारत का इतिहास खाली हो जाएगा।लैकिन बात यह है कि इतने विशाल इतिहास को रखने बाला यह भारत कैसे इतनी लम्वी गुलामी मे चला गया।तो विचार मंथन करने के बाद कई बाते सामने आती हैं।एक तो महाभारत सीरियल जब चल रहा था तब का एक सीन मैं कभी नही भूलता जब भीष्म पितामह माँ गंगा से पूछते हैं कि माँ इतना समृद्धिशाली इतिहास होने के बावजूद भी यह जो कुछ हो रहा है उसका कारण क्या है।तो माँ गंगा का उत्तर विचारणीय है कि वेटा पहाड़ की चोटी पर पहुँचने के बाद वहाँ से फिर कहाँ जाओगे क्योंकि वहाँ से ऊपर कोई स्थान ही नही है,अब चूकि हस्तिनापुर अपना चरम विन्दु पा चुका है तो अब नीचे आना शेष है और बाकी आपके महान कार्य व्यवहार  आपके बच्चों का मार्ग दर्शन करते है।
तो यह तो बात हुयी कि चरम सीमा पर पहुँचने के बाद और आगे नही जाया जा सकता।लैकिन इतना नीचे पहुँच जाएगे यह बात अब अधिक विचारणीय हो गयी है।किसी भी युग में भारत के सम्मानित शासक जिन्है हम अपना पूर्वज कहते रहै है सब कुछ रहै हो पर भृष्ट नही रहै।तभी हम उन्है अपना महापुरुष कहते रहै हैं।क्यो कोई जवरजस्ती किसी से दीपावली या होली या कृष्णजन्माष्टमी मनवाता है सभी अपने आप अपनी श्रद्धा रखते हुये मनाते हैं।अन्य धर्मों में तो भी जवरजस्ती होगी किन्तु इस मानवतावादी धर्म में वहुत से त्यौहार जातियाँ विशेष ही मनाती है किन्तु कुछ त्यौहारों को तो उत्तर में काश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक सभी वड़े ही प्रेम से मनाते है तो यह सिद्ध हो जाता है कि ये महान पुरुष किसी एक वर्ग का भला करने वाले नही थे इन्हौने सारे वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हुये रावण या कंस अथवा महिषासुर के अत्याचारों से समाज को मुक्ति दिलाई थी।तो फिर एसा क्या हुआ कि दुर्गा,राम व कृष्ण ही नही अन्यान्य समाजसेवी महापुरुषों को मानने वाले उनकी पूजा करने वाले देश को इन समय समय पर आते रहने वाले तूफानी आकृमण कारियों ने गुलाम बना लिया।
तो मै आज जिस बात को कहने जा रहा हू वो कुछ अलग प्रकार की है।कि भारत ने अपनी पूजा पद्धति ,शिक्षा पद्धति चेन्ज की है तब से हम पर आकृमणों की छड़ी लग गयी है।जब से हमने अपने महापुरुषों की पूजा लोटा चढ़ाकर और मंदिर में फूल अर्पित करके करनी शुरु की है तब से हमारा दुर्भाग्य प्रारम्भ हो गया है । लैकिन अब समय आ गया है कि सचेत हो जाऐं।हमें इतिहास से शिक्षा लेनी चाहिऐ।इस बात को मैं कुछ हिस्सों में बताउँगा ।कृपया नियमित पढ़ना जारी रखें।                                                       भाग-1
बात को लम्बी न ले जाकर में अब उस वात पर आ रहा हूँ जो कहना चाहता हूँ।
भारत की आजादी को अब कोई छोटा मोटा समय नही पूरा 65 वर्ष का समय बीत चुका है।जितना समय आजकल एक व्यक्ति को नही मिलता है।आजादी के बाद हमारी कमाई वढ़नी चाहिये थी इसकी जगह जो कुछ हम पर था वह भी लुट गया और हम कर्जदार भी हो गये देश की आजादी के समय कुछ धन लगभग 25000 करोड़ रुपया हमारा विट्रेन पर बाकी था हमारे देश के नेता उसे भी खा गये औऱ उससे कई गुना और कर्ज लेकर सटक गये तथा डकार भी न ली।औऱ फिर भी जनता के सामने इमानदार के ईमानदार ही बने रहै।और देश को एसे ऐसे घाव दे गये कि मरने के बाद भारत की वास्तविक जनता के लिए नासूर बन गये हैं।तो आज मजबूर होकर एसे नेताऔं की कुण्डली देखने के लिए कुछ राष्ट्र भक्तो को मजवूर होना पड़ा है कि वास्तव में ये लोग जिस रुप में थे वो वही थे या कहीं कालनेमि के रुप में भारत के हनुमानो को धोका देते रहै और हनुमान जी उसे रामभक्त ही समझते रहै त्रेता के हनुमान जी को तो जामवंत जी ने जगा दिया था तो बात ही कुछ और थी किन्तु आज का हनुमान अर्थात भारत की जनता इतनी चिर निद्रा में लीन है कि उसे अपना भला बुरा दिखाई नही दे रहा है।उसे पैसे की स्वपनिल चमक ने चकाचौध कर दिया है।लैकिन जव निद्रा टूटेगी तो पता पड़ेगा कि जिस महल को बना कर खड़ा किया है उसके नीचे जमीन ही नही है।
तो आज बात करते है भारत की आजादी की और आजादी के रहनुमा बने उन नेताओं की जिन्हौने भारत की स्वतंत्रता की वलिवेदी पर चड़े सभी राष्ट्रभक्त शहीदों और बचे हुए रण बाँकुरो के कारनामों का सम्पूर्ण श्रैय खुद ही लूट लिया औऱ लूट लिया भारत की इस मानवता वादी भौली भाली जनता को जिसने इन लोगों को अपना मसीहा समझा था।
अब सबसे पहले समझो काग्रेस क्या थी व इसका निर्माण क्यों हुआ था ?
तो जब 1857 की आजादी की लड़ाई के बाद अग्रेज घवरा गये तब उन्होने योजना बनायी कि कैसे इन भारतीय लोगो की उग्रता को कम किया जाए जिससे अग्रेज आराम से यहाँ राज्य कर सकें।और अगर भारतीयों को कोई विद्रोह की स्थिति पैदा ही न होने पाए और अगर कोई स्थिति पैदा हो भी तो तुरन्त निराकरण इन्ही के द्वारा कराया जाए क्योंकि लोहा ही लोहे को काटता है।किन्तु थोड़े ही दिनो में कांग्रेस में राष्ट्रवादी लोग जुड़ गये तथा उन्होने देखा कि कांग्रेस के मंच से केवल जनता को संबोधित ही किया जा सकता है किन्तु देश को स्वतंत्र नही कराया जा सकता तो उन्हौने अनेकों क्रान्तिकारियों को सहयोग कर बंगाल महाराष्ट्र व पंजाव के साथ-2 संयुक्त प्रान्त आज के उत्तर प्रदेश,विहार व मध्यप्रदेश में अनेकों क्रान्तिकारी दलों का सहयोग शुरुकर दिया ये कांग्रेसी थे महाराष्ट्र के महान देशभक्त बाल गंगाधर तिलक,बंगाल के विपिन चंन्द्र पाल व पंजाव के लाला लाजपत राय और अन्य अनेकों महानुभाव भी थे जिनको समय व स्थान की कमी के कारण से में नही वता पा रहा हूँ और फिर वीर प्रसवनी मातृभू पर वीरो की कमी नही है सभी के नाम न तो मुझे ही याद होंगे न ही मैं इतना विद्वान हूँ मेरी उन महान शहूदों को जिन्है मैं नही जानता हूँ को भी श्रद्धांजलि।तो काग्रेस के निति नियंता मिस्टर हृयूम ने देखा कि मैरी मर्जी के अनुरुप काम नही हो रहा वल्कि कांग्रेस तो सम्पूर्ण आजादी के लक्ष्य पर चल निकली है।तब उसने काग्रेस में फूट डालकर दो दल बना दिये एक जो क्रान्ति समर्थक थे।वे गरम दलीय व जो अंग्रेज समर्थक थे वे नरम दलीय नाम से विख्यात हुये जिनके नेता श्री गोपाल कृष्ण गोखले जी हो गये।अब क्योंकि शासन अग्रेजों का था ही समाचार पत्रों पर नियंत्रण सरकार का था रेडियो सरकारी थे अतः नरम दलीय कांग्रेस को प्रचार मिला तथा गरम दलीय को जेल मिली और सूचनाए बाहर तक भी नही आती थी जब कोई बहुत बड़ी घटना होती तो ही गरम दलीय नेताओं का नाम कभी समाचार पत्र या रेडियो पर लिया जाता जबकि नरम दलीय नेताओं को काग्रेस कहकर जनता में खूव प्रचारित किया जाता और किसी भी आन्दोलन की चाबी हमेंशा सरकार के हाथ में होती जो सर ए हृयुम चाहता था वैसा हो रहा था ।अतः सरकार इनके पक्ष में थी।जब सरकार को किसी क्रान्ति कारी से कोई परेशानी होती तो कांग्रेस के नेताओं से कहकर उनकी क्रान्ति को बदनाम कर अहिंसा के नाम पर जनता को वरगलाया जाता तो सरकार इनका क्यूकर विरोध करती।अतः जल्दी ही कांग्रेस के नेता फेमस हो गये।औऱ राष्ट्रवादी नेता गर्त में चले गये।इसका सच्चा उदा. आपको भगत सिंह या चन्द्रशेखर के मामले में समझने से मिल जाएगा।इन्हौने खूब वदनाम किया क्रान्तिकारियों को कहा जाता है कि चन्द्रशेखर के अल्फ्रेड पार्क में होने की सूचना भी भारत के एक सर्वाधिक वरिष्ठ नेता ने ही दी थी।जिन पर जनता ने भरोसा कर सर्वाधिक वरिष्ट पद दिया और उन्हौने भारत को अनेको समस्याओं से ग्रस्त कर दिया। यह तो एक तथ्य ही है कि एक बार जब कांग्रेस में फिर से राष्ट्रवादियों का वर्चष्व कायम हो गया तब महान स्वतन्त्रता सेनानी सर्व श्री सुभाष चन्द्र वोस जी को कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुना गया तब कांग्रेसी महात्मा जी जिन्है हम लोग आज वापू कहकर पुकारते है ने यह कहते हुये अनसन कर दिया कि मुझे किसी भी कीमत पर सुभाष मंजूर नही है।तब सुभाष बावू ने खुद ही कांग्रस की प्राथमिक सद्स्यता तक से इस्तीफा दे दिया था।यह इन लोगों की मानवताओं का नमूना है।और उसके वाद भी सुभाष चन्द्र वोस आजादी के लिए जापान चले गये तथा वहाँ जाकर आजाद हिन्द फौज का गठन किया औऱ आजादी की लड़ाई लड़ी किन्तु वाह रे कालनेमियों तुमने फिर भी इन्हैं नही वख्सा वे प्लेन  क्रेस मे मरे या जिन्दा रहै पता ही न चलने दिया।
आगे देश का बँटवारा हुआ वो भी धर्म के नाम पर तो भारत को बना दिया धर्म निरपेक्ष राष्ट्र क्यों क्योंकि यह तुम्हारे पापा जी दे गये थे तुम्हैं कि वेटा जैसा चाहै वैसा करना।औऱ यह भी तब जव कि
 1921-22-23में तुमने मुसलमानों का टर्की का खलीफा अग्रेजों द्वारा बदल दिये जाने पर मुसलमान अग्रेज विरोधी हो गये तव तुमने उनका सहयोग हिन्दुओं द्वारा कराया जिसमे हिन्दुओं ने अपने कार्यकर्ता अपना पैसा अपनी शक्ति लगाई तथा मुसलमानों के कहने पर इस सम्पूर्ण धन को मुसलमानो को सौप दिया जिससे उन्हौने हथियार खरीदे गोला वारुद खरीदी तब तुम्हारी अहिंसा कहाँ चली गयी थी।और जब सारी शक्ति लगाने के बावजूद भी अग्रेजों का कुछ न् विगाड़ सके और अग्रेजों ने अपनी सेना लगाकर मुसलमानों का प्रतिकार ही नही किया पूर्ण उच्छेद कर डाला तो उन मुसलमानों ने जिनमें उत्तर प्रदेस मे वने एक नवीन विश्वविद्यालय के परम आदरणीय जिनके नाम पर विद्यालय वनाया गया है ही प्रमुख थे ने हिन्दुओं पर अपनी भड़ास निकालते हुये एसे कत्लेआम को अंजाम दिया हजारों बहिन वेटियों की इज्जते लूटी गई,सामूहिक बलात्कार किये गये,तलवार के बल पर सामूहिक धर्म परिवर्तन कराया गया और दंगा शांत होने पर जो लोग धर्म परिवर्तित कर बापस आना चाहते थे उन पर दोबारा अत्याचार हुऐ अगर इस बात का आँखों देखा वर्णन सनना व पढ़ना हो तो वीर सावरकर की पुस्तक मोपला को पढ़े। जिसे भारतीय इतिहास में 1923 का मोपला काण्ड के नाम से जाना जाता है।
चलो यह मान भी ले कि तुम महानता के वड़े ही असली पुजारी थे क्या 1947 में बँटवारे के तुरन्त पहले नोआखाली कलकत्ता के ही नही जहाँ भी मुसलमानों की संख्या अधिक थी वहाँ के दंगे तुम्हारी आँखे खोलने के लिए काफी नही थे जो तुमने भारत को जानबूझ कर नोवल पुरुस्कार विजेता वनने के लिए एसी आग में झोंक दिया जो आज तक वुझाए नही वुझ पा रही है। अभी मेरी वात अधूरी है आगे फिर वताऊंगा
                                                                                      क्रमशः------------------------------------

Saturday, October 27, 2012

शिकागो सम्मेलन मे स्वामी विवेकानन्द (निबंध -हिन्दु धर्म)

आज का समाज  जिसे इतिहास मानता है उस युग से पहले के दुनिया में आज केवल तीन धर्म ही मौजूद हैं जिनमें प्रथम हिन्दु धर्म,द्वितीय यहूदी व तृतीय पारसी धर्म ।प्रचण्ड आघातों को सहकर भी जीवित बने होना इन तीनों धर्मों की आंतरिक सामर्थ्य का ही प्रमाण है।हम जानते हैं कि ईसाई धर्मे के प्रवल आघातों को ही नही अपितु नव उत्पादित इस्लाम के खतरनाक पंजो से बचकर भी खुद को निर्वासित कर इस महान धर्म ने अपने आप को बचाए रखा तथा इसी प्रकार प्रसिद्ध फारस का जर्थुस्त द्वारा प्रचारित पारसी समाज भी प्रवल झंझावातो को झेलता हुआ अभी तक विद्यमान है।यहूदियों ने फिर भी अपना पूर्व स्थान येरुशलम प्राप्त कर लिया हो किन्तु पारसी आज भी चाहै भटक ही क्यों न रहें हों किन्तु अपने आप को बचाए अवश्य रखा है।
परन्तु भारत की भारत माता की तथा भारत के प्रमुख धर्म हिन्दु की जिजीविशा के तो कहने ही क्या ।अनेको प्रवलतम झंझावातो ही नही महानतम तूफानों के प्रवल थपेड़ो को खाकर जहाँ अनेको सभ्यताऐं यथा यूनान,मिश्र या मेसोपोटामिया,रोम आदि की सभ्यताऐ नेस्तनाबूद ही हो गयी वही हमारी सभ्यता हमारा धर्म हमारी मान्यताऐं ज्यों की त्यों आज भी जिन्दा हैं।
अगर यहूदी व पारसियों की बात करे तो ये भी आज केवल अवशेष मात्र ही हैं वहीं एक के बाद एक करते हुऐ अनेकों धर्म पंथो का उदभव भारत भूमि में हुआ औऱ वे समय समय पर इस वेद प्रणीत हिन्दु धर्म को जड़ से हिलाते हुये से प्रतीत हुऐ पर अन्ततः अपनी जन्म दात्री हिन्दु धर्म की विराट काया ने उन्हैं अपने में आत्म सात कर लिया।
आधुनिक विज्ञान के नवीन तम आविस्कार जिसकी केवल प्रतिध्वनि मात्र हैं ,ऐसे वेदान्त के अच्युत भाव से लेकर सामान्य मूर्तिपूजा,अनेकानेक पौराणिक कहानियो किवदंतियों और यही नही वोद्धों के अज्ञेयवाद तथा जैनों के निरीश्र्वर वाद के लिए भी हिन्दुधर्म में स्थान दिया गया है।तव प्रश्न उठता है कि वह कौन सा आधार है जिस पर इतने परस्पर विरोधी भासने वाले ये सब भाव आश्रित हैं इन्हीं प्रश्नों का उत्तर स्वामी विवेकानन्द जी ने दिया है।जो बातें उन्हौने शिकागो अधिवेशन के मंच से 19 सितम्बर 1893 को अपने निवंध में कही थी।
                   
1-यह सृष्टि अनादि है।
     स्वामी जी ने कहा- हिन्दु जाति ने अपना धर्म अपौरुषेय वेदों से प्राप्त किया है।उनकी धारणा है कि वेद अनादि व अनंत हैं। संभव है कि यह हास्यास्पद मालूम हो।कोई पुस्तक अनादि व अनंत कैसे हो सकती है.परन्तु वेद का अर्थ है भिन्न भिन्न कालों में भिन्न भिन्न व्यक्तियों द्वारा आविस्कृत आध्यात्मिक तत्वों का संचित कोष।जिस प्रकार गुरुत्वाकर्षण  का सिद्धान्त मनुष्यों के पता लगने से पहले भी अपना काम करता था औऱ आज उसे मनुष्य जाति उसे भूल भी जाए तो भी वह नियम काम करता रहेगा।ठीक वही बात आध्यात्मिक जगत को चलाने के सम्बंध में भी है।एक आत्मा का दूसरी आत्मा के साथ और प्रत्येक आत्मा का  परम पिता परमात्मा के साथ जो नैतिक दिव्य आध्यात्मिक संबंध है,वे हमारे पूर्व भी थे और हम उन्है भूल भी जाए तो भी वे बने रहेंगे।इन नियमों को या सत्यों को आविस्कृत करने वाले ऋषि कहलाते हैं और हम उनको पूर्णत्व को पहुँची हुयी आत्मा मानकर सम्मान देते हैं।यहाँ कोई यह कह सकता है कि ये आध्यात्मिक नियम,नियम के रुप में अनंत भले ही हो ,किन्तु इनका आदि तो होना चाहिये।वेद हमें यह सिखाते हैं कि सृष्टि का न आदि है न अन्त (अतऐव इन नियमों व सिद्धान्तों का भी न आदि है न अन्त ।विज्ञान ने हमे यह कर दिखाया है कि समग्र विश्व की सारी शक्ति समष्टि का परिणाम सदा एक सा रहता है।(द्रव्य की अविनांशता का नियम-यह मैनेअर्थात ज्ञानेश ने अपने विवेक से डाल दिया है  )तो फिर यदि ऐसा कोई समय था जब किसी वस्तु का अस्तित्व ही नही था ,उस समय यह सम्पूर्ण व्यक्त शक्ति कहाँ थी? कोई कोई कहते है कि ईश्वर में ही वह सब अक्रिय रुप से निहित थी तब तो कोई ईश्वर कभी निश्क्रिय औऱ कभी सक्रिय है, इससे तो विकार शील हो जाएगा।प्रत्येक विकार शील पदार्थ मिश्रित होता है और हर एक  मिश्रित पदार्थ मे वह परिवर्तन अवश्यंभावी है,जिसे हम विनाश कहते हैं।इस प्रकार तो प्रभु की मृत्यु ही हो जाएगी।जो कि सर्वथा असंभव एवं हास्यास्पद कल्पना है।अतः ऐसा समय कभी नही था,जब यह सृष्टि नही थी।यह सृष्टि अनादि है।
मनुष्य के पूर्व जन्म कृत कर्म ही उसका स्वभाव व उसका भाग्य बनाते हैं।
            कुछ लोग जन्म से सुखी होते हैं,पूर्ण स्वास्थ्य का आनंद भोगते हैं,उन्है सुंदर शरीर,उत्साह पूर्ण मन और सभी आवश्यक सामिग्रियाँ प्राप्त होती हैं।दूसरे कुछ लोग जन्म से दुःखी होते हैं,किसी के हाथ पाँव नही होते हैं तो कोई जन्म से मूर्ख होते हैं,और येन केन प्रकारेण अपने दुखमय जीवन के दिन काटते हैं ऐसा क्यों ?
यदि ये सभी एक ही न्यायी औऱ दयालु ईश्वर ने उत्पन्न किये हों,तो फिर उसने एक को सुखी व दूसरे को दुखी क्यों वनाया?भगवान एसा पक्षपाती क्यों है?फिर ऐसा मानने से भी बात नही सुधर सकती कि जो इस वर्तमान
जीवन में दुखी हैं वे भावी जीवन में भी पूर्ण सुखी रहेगें।न्यायी और दयालु भगवान के राज्य में मनुष्य इस जीवन में भी दुःखी क्यो रहे?दुसरी बात यह है कि सृष्टि उत्पादक ईश्वर को मान्यता देने वाला यह सिद्धांत सृष्टि मे इस वैषम्य के लिए कोई कारण बताने का प्रयत्न ही नही करता ,बल्कि वह तो केवल एक सर्वशक्तिमान स्वेच्छाचारी पुरुष का निष्ठुर व्यवहार ही प्रकट करता है।इस प्रकार यह स्पष्ठ ही है कि यह कल्पना युक्ति विरुद्ध है।अतएव यह स्वीकार करना ही होगा कि इस जन्म के पूर्व ऐसे कारण होने ही चाहिए,जिनके फलस्वरुप मनुष्य इस जन्म में सुखी या दुखी हुआ करता है। औऱ ये कारण है उनके ही पूर्वानुष्ठित कर्म।
            मनुष्य के शरीर औऱ मन की गठन उसके पिता पितामह आदि के शरीर मन के अनुरुप होती है,ऐसा आनुवंशिकता का सिद्धान्त क्या उपर्युक्त समस्या का समुचित उत्तर न होगा ? यह स्पष्ठ है कि जीवन स्रोत जड़ और चैतन्य इन दो धाराओं में प्रवाहित हो रहा है।यदि जड़ और जड़ के विकार ही आत्मा,मन,वुद्धि आदि हम जो कुछ हैं उन सब के उपयुक्त कारण सिद्ध हो सकते तो फिर औऱ स्वतंत्र आत्मा के अस्तित्व को मानने की कोई आवश्यकता ही न रह जाती।अवस्य यह स्वीकार नही किया जा सकता कि कुछ शारीरिक प्रवर्तियाँ  माता पिता से प्राप्त होती हैं।पर इनका संबंध केवल शारीरिक गठन से है,जिसके द्वारा जीवात्मा की कोई विशेष प्रवृति  प्रकट हुआ करती है।उसकी इस विशेष प्रवृति विशेष का कारण उसी के पूर्वकृत कर्म हुआ करते हैं।एक विशेष प्रवृति वाला ''जीवात्मा योग्य योग्येन युज्यते'' के अनुसार उसी शरीर में जन्म ग्रहण करता है जो उस प्रवृति के प्रकट करने के लिए सबसे उपयुक्य आधार हो।यह पूर्ण तया विज्ञान संगत  है, क्योंकि विज्ञान कहता है कि प्रवृति या स्वभाव अभ्यास से बनता है,और अभ्यास बारम्बार अनुस्ठान का फल है।इस प्रकार एक नवजात बालक की स्वभाविक प्रवर्तियों का कारण बताने के लिए पुनः पुनः अनुष्ठि पूर्व कर्मों को मानना आवश्यक हो जाता है और चूकि वर्तमान जीवन में स्वभाव की प्राप्ति नही की गई,इसलिए वह पूर्व जीवन से ही उसे प्राप्त हुआ है।












Friday, October 26, 2012

कागज के रावण का अंत

कल विजयादसमी का पर्व धूम धाम से मनाया गया।किन्तु मैं अपने फेसबुक एकाउण्ट को खोलकर वैठा रहा तो देखता हुँ कि मैं ही इण्टर नेट पर वैठा अकेला बेवकूफ नही हूँ और भी बहुत से लोग लगे हुए हैं तो दिल को तसल्ली हुयी कि भाई जिस काम को अनेकों लोग कर रहैं हो वह वेबकूफी भरा तो नही हो सकता हो सकता है गलत हो तो शायद भारत की इस ईस्ट ईण्डिया कम्पनी की मालकिन श्री मती सोनिया गाँधी जिन्हैं इनकी वास्तविक सुसराली नाम सोनिया खाँदी जी हाँ यही नाम है जो सोनियाँ जी  के सुसर श्री मान नहेरु दामाद सर्व श्री फिरोज खान ने गाँधी जी की बात को 60% मानते हुये अपनी माँ के नाम पर रख लिया था क्योंकि शादी से पहले उनकी माँ का य़ही सर नेम था जो उनके मुस्लिम पिता के कारण बदल कर खान हो गया था। खेर इस बात की चर्चा बाद में करेगें कि यह क्या हिस्ट्री है लेकिन आज के मुद्दे की बात। हाँ तो मैं किस जगह था कि मालकिन सोनिया गाँधी औऱ उनके भारतीय ऱावण ने कागज के रावण को फूँक दिया । भाइयो ये मैं नही कह रहा मैने तो फेसवुक पर देखा कि अनेको लोग आज विजयादशमी के पावन पर्व पर उदास होकर वैठे हैं मैने पूछा कि रावण देखने नही जाना तो कई बोले कि क्या जाए यार वहाँ राम तो हैं ही नही क्योंकि सरकार ने पहले  ही घोषित कर दिया था कि राम कभी हुआ ही नही था।अब यार कागज के रावण को मारने के लिए एक हाड़ मांस का रावण सुमाली की जगह सोनिया के साथ वेचारे उस कागज के निरीह से रावण को मारने आ रहे हैं जिस रावण ने कोई सीता हरी ही नही है औऱ हरे कहाँ से रावण के राज में सीता कहाँ से आए औऱ अगर है भी तो वेचारा कागज का रावण इस हाड़ मांस के रावण के डर के मारे रामलीला ग्राउंड से वाहर ही नही निकला होगा कि यार यहाँ कोई सीता मिले न मिले खामखा वीमारी क्योंकि सीता तो मिलने से रही इस रावण राज में जिधर निकलुगाँ वहाँ वन की जगह सड़क भटकती शूपर्णखा अवश्य मिल जाएंगी क्योंकि पहले तो सीता है ही अत्यधिक कम क्योंकि किसी से भूल से कह भी दिया कि तू तो सीता है सावित्री है तो तुरन्त सुनने को मिलेगा कि होगी तेरी बहिन सीता सावित्री मुझे कह रहा है सीता सावित्री शर्म नही आती एसी वात कहने मे़ और जो कह दिया है प्यारी तुम तो विल्कुल एसी लग रही हो जैसी विपासा वसु या और कोई सेक्सी गर्ल का नाम ले दो तो तुम्हैं वाह वाही मिलेगी तो रावण ने सोचा कि क्यों अपनी वहिनो को ही छेड़ा जाए इसलिए बैचारा रामलीला ग्राउण्ड  से ही नही निकला।पर उसे क्या पता था कि कलियुग में रावण ही रावण का दुस्मन वन जाता है।उसे तो अपने समय का पता था कि उसने आवाज दी खर दुषण को और वो जी महाराज करते चले आऐ।उसने आवाज दी कुम्भकर्ण को तो वो भागा चला आए जागते ही उनीदा उनीदा ही कि भाई की आवाज है उसे क्या पता बैचारे को कि अब भाई ही भाई का दुश्मन न. 1 है मु्म्बई तो इस मामले में सबसे आगे है जहाँ एक भाई दुसरे को देख ही नही सकता सैकड़ो भाई इसी काम में प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में मारे जाते है लैकिन भला हो भाई पैदा करने वाले आजम गढ़ का जहाँ की धरती इतने भाई पैदा करती है हर साल कि फौज ही कम नही होती रावण भी यह देख कर दुवका वैठा था सोच रहा था कि मैरे तो एक  लाख पूत औऱ सवा लाख पूतों को मेरे दुश्मन राम ने यू ही मार दिया था किन्तु ये भाईयो की फौज के तो हजारों दुश्मन हैं फिर भी खत्म नही होती क्या कारण है तो उसे क्या पता था कि अनबरत भाई जनने की नर्स काग्रेश का इस भारत पर लगातार 60 -70 वर्ष सा शासन चल रहा है।उस रावण का कैवल एक दोष कि उसने केवल अपनी नकटी वहिन की बातों मे आकर सीता का हरण कर लिया था लैकिन शायद अपनी प्रजा को विल्कुल भी दुखी नही किया था लैकिन यह रावण तो किसी को चैन ही नही लेने देता रात को सोते है कि भगवान भला करना सवेरे उठने से पहले खवरिया सूचना देता कि कि आज तुम लोगों के सामाजिक घर से 50000 करोड़ का घोटाला हो गया पेपर पड़ा तो मालूम हुआ कि किसने किया पता पड़ा कि जलेवी की रखवाली पर रखी कुतिया ही सारी जलेवी खा गयी है।दूसरे दिन फिर भोर हुयी खवरिया आया बता गया कि कल से दोगुनी लूट हुयी मतलब 1लाख करोड़ की अरे भाई अव क्या होगा अव कुछ नही मत्री मंडल के लोग  वैठेगे यानि की कुतियाओं का दरवार लगेगा और पता लगाएगा कि जलेवी कौन- 2 ने खाली है।और हाँ कोई बाहर जाकर नही कहेगा कि केवल इसी ने खाई हैं। क्योंकि अब की से नम्वर तेरा ही है यार तू क्यों परेशान हो रही है मेडम हैं न ।और हाँ कोई जलेवी वाला कुछ कहै तो सबको एक साथ भौकना है जिससे आगे से कुछ कहै ही नही ।और ये बावा विना मतलब के खाली पीली यार हमारी जलेवी की तरफ वड़ी रखवाली की नजर से देखता है सब मिल कर इसका काम तमाम क र दो इससे पूछों तेरे इस हकीम खाने को कहाँ से माल मिला है यह सही भी है तो क्या हुआ जनता थोड़ै ही समझती है क्या है हमारी औऱ भी अनेकों आ ही जाएगे और जो आ जाए उसे भी थोड़ी सी खुशवू सुघा दो जिससे वो मरे नही वेहोस रहे औऱ हम माल पर माल खातै रहै औऱ वो केवल हमारे पीछे दुम हिलाता देखता रहै।और जव भी असली मालिक कुछ वोले इन्हैं अड़ा दो हाथ मे तलवार लेकर धर्म निरपेक्षता की क्योंकि यही तलवार है जो इन जलेवी के  असली मालिक से वचा सकती है और यह जलेवी कामालिक ही कौन सा वहुत होसियार है जो जातिवाद की हवा हमने घुमाई नही कि इनमें से अनेक हमार चारों तरफ आ जाएगै  पूछ  हिलाते हुए ।और जलेवी फलेवी भूल जाएगै ।
अरे रावण के बारे में क्या स्टेप घूमा यह तो भूल ही गये।
तो वैचारा सुमाली वाला रावण सोनिया वाले रावण के सामने वोना पड़ गया क्योंकि उसकी सारी सेना तो त्रेता में ही राम ने मार दी थी औऱ मार दिया था उसको भी किन्तु पहले राम से दुश्मनी थी तो राम जी हर वार आते औऱ रावण का मन भर जाता कि यार इस प्रेत योनि में केवल एक काम तो कर ही लू कि अपने  शत्रु राम से युद्ध करके मन की भड़ास तो निका ल ही दूगाँ।सो वैचारा आ गया यहाँ मरने को अपने से भी विशाल रावण से लडने पता ही नही था कि अब राज्य बदल गया है।औऱ राम तो पैदा ही नही हुआ ही नही तो लड़ने कैसे आएगा ।और अबकी बार उसे लड़ना पड़ा हाड़ मांस वाले अपने से भी ज्या दा ताकत वर रावण से तो कैसे करे रावण।अतः मन मारकर वैठ गया है कि कैसे लड़ाई होगी।वैचारा सुवह से शामतक परेशान रहा कि यार कैसे युद्द होगा
वह राम तो बात दुश्मनी के भी बात मानता था देखा कि रावण का तीर मिसकर गया है तो राम तीर नही छोड़ते किन्तु जव मैने युद्ध के नियम नही माने थे तो यार कैसे यह नया रावण एसामुझे कर ने देगा।एक वार उसके दिमाग में आया कि चल ठीक है यार दोस्ती कर लेंगे लैकिन कलियुग के दोस्तो की कहानी सुन कर फिर उदास वैठ  गया किन्तु लोगो के समझाने पर युद्ध को तैयार हो गया  लैकिन उहापोह की स्थिति में शाम है गयी कि राम का रुप निभाने के लिए प्रधान मंत्री जी ही आ गये वैचारा कागज का रावण क्या करता मरता क्या न करता उसने नमस्कार किया लैकिन वेकार क्योकि अगर साम्राज्य वचाए रखना है इन छोटे पुराने जमाने के चोरों को तो ठिकाने लगाना ही पड़ता है तो उस जमाने का एक स्त्री की चोरी करने वाला रावण क्या खाकर ओलम्पिक खेलों सामान किराए पर लेकर ,  स्पेक्ट्रम की चोरी करेके या कोयला घोटाला करके हमारा सहयोग कर सकता है औऱ फिर जो काम का नही उसे रखने से क्या फायदा सो नये हाड़मास के रावण ने नये सुमाली के साथ पुराने रावण के सारे अंग गुस्से में यो फूक दिये औऱ कहा कि यह कलयुग है इसमे कोई मित्र  या शत्रु  नही होता है।और वड़े कामों के लिए (डकेती )छोटे लोगों का वलिदान करना ही पढ़ता है ।और रावण तुम तो गुजरे दिनों के रावण होगे आज तो तुम्हारा हमासे कोई मुकावला है भी नही  और एक 31 तीरों बाला तीर चला दिया और कागज का रावण फुक गया।






Sunday, October 21, 2012

सरकारी डिक्सनरी से आखिर क्यों नहीं हटाते धर्म और जाति बोधक शब्द?


भारत को धर्म निरपेक्ष ऱाष्ट्र घोषित कर धर्म निरपेक्षता की मनमानी परिभाषा गणना ऱाजनीतिज्ञों के वाऐ हाथ का खेल है।लैकिन जो परिभाषा गड़ी है उस पर तो बने रहो उसे भी परिवर्तित करते रहते हों तुम्हारी इस परिभाषा के चलते भारता का आम आदमी दोयम दर्जे का नागरिक बन गया है। उसके सारे अधिकार अल्पसंख्यक नाम से केवल दो समाज ही खा रहें हैं वाकी अल्पसंख्यक तो केवल संख्या बढ़ाने के लिए इस समुदाय में जोड़ दिये गये हैं।
सरकार के इसी ढोंग को प्रदर्शित करता यह लेख श्री सुभाष कांडवाल जी ने लिखा हैं जिसे मैने आपके लिए इस राष्ठ्रधर्म के मंच पर लाया हूँ।उनके ब्लाग की अन्य पोस्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
आजकल सरकार का हमेशा एक ही तरह का ब्यान आ रहा है कि भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के साथ सांप्रदायिक ताकतों जैसे संघ परिवार, बी जे पी, विश्व हिन्दू परिषद् आदि संघठनों का हाथ है, चाहे उस मुहिम का नेतृत्व बाबा रामदेव कर रहे हों या चाहे गाँधी वादी अन्ना हजारे. हमारी कोंग्रेस सरकार को हर जगह संघ और बी जे पी ही नजर आती है. अब सवाल ये उठता है कि यदि बी जे पी और आर आर अस जैसे संघठन सांप्रदायिक हैं और देश में सांप्रदायिक आतंकवाद फैलाते हैं या फ़ैलाने की कोशिश करते हैं तो क्यों आज तक इस प्रकार के खिलाप कार्यवाही नहीं की गयी? क्यों आज तक इस प्रकार के संघठनों की मान्यता को रद्द नहीं किया गया?
दूसरा सबसे बड़ा प्रश्न है, अगर सभी लोग ये मानते और चाहते है कि देश से सम्प्रदाय वाद और जाति वाद ख़त्म होना चाहिए तो क्यों सरकारी तंत्र सरकारी स्तर पर इन सबको बढ़ावा और प्रशय दे रहा है. आखिर क्यों नहीं सरकारी डिक्सनरी से धर्म और जाति बोधक शब्दों को हटाया नहीं जाता है. क्यों आज भी सरकारी काम काजों में इस प्रकार के शब्दों का बहुतायत मात्र में प्रयोग हो रहा है. क्यों धर्म और जाति के नाम पर विभिन्न संघटन बनाए गए है जिनको सरकार का प्रत्यक्ष रूप से समर्थन और आश्रय प्रदान होता है. धर्म के नाम पर दुनिया भर के आयोग सरकार द्वारा बनांये गए हैं मुझे नाम गिनाने की कोई आवश्यकता नहीं है.  कोई भी ऐसा छोटा बड़ा धर्म, सम्प्रदाय नहीं है जिन पर कोई न कोई सरकारी आयोग नहीं बना हुआ हो. आखिर क्या जरूरत है इन धर्म विशेष सामाजिक संघठनों का? क्यों आज भी सरकारी स्तर पर हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौध, जैन, दलित, ब्राहमण, क्षत्रिय…आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है. क्या ये संघठन और शब्द साम्प्रदायिकता के दायरे में नहीं आते है? क्यों नहीं सरकार इस प्रकार के संगठनों को बंद कर देती है और कोई ऐसा आयोग बनाती है जिस पर किसी धर्म विशेष का “टैग” न लगा हो और जो भारत के सभी वर्गों और सभी धर्मों के लोगों के लिए निष्पक्ष रूप में काम करे?
ये तर्क देना कि समाज के निर्बल वर्ग को सबल बनाने के लिए इस प्रकार के आयोगों का गठन करना जरूरी है, अपने आप में कई प्रश्न चिह्न खड़े करता है. जाति और धर्म के नाम पर किसी विशेष सम्प्रदाय का भला करना और किसी विशेष सम्प्रदाय/जाति के लोगों को उपेक्षित करना, अपने आप में कितना उचित है, ये आज सोचने का वक्त आ गया है. दोहरे मापदंड केवल राजनीति के लिए ही अच्छे होते है सामाजिक उत्थान के लिए नहीं. अगर समाज के निर्बल और उपेक्षित वर्ग को सबल और समाज की मुख्या धारा में लाना है तो “आर्थिक स्तिथि” को मापदंड बनाना होगा न कि धर्म और जाति को.
मैं तो यही कहूँगा कि कम से कम सरकारी स्तर पर धर्म और जाति बोधक शब्दों पर बिलकुल बैन लगा देना चाहिए. सरकार की नजर में सब बराबर होने चाहिए, कोई भेद-भाव वाला आचरण कम से कम सरकारी तंत्र में नहीं होना चाहिए, तभी इस देश से “सांप्रदायिक” शब्द का समूल विनाश हो सकता है अन्यथा नहीं.
अंत में यही कहूँगा जब तक सरकार खुद इस प्रकार के कोई कदम नहीं उठाती तो ये कहना कि अमुक संघठन सांप्रदायिक है, कितना उचित है ये आप सभी लोग भली भांति समझते हैं.

भारतीय किसी भी काम में अन्य समाज से आगे हैं।


भारतीय लोगों भारतीय सामानों  व भारतीयता की हँसी उड़ाने वालों के लिए यह प्रेरणास्पद घटना है जिसका उल्लेख कभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के परम पूजनीय पूर्व सरसंघचालक श्री सुदर्शन जी ने किसी संघ शिक्षा वर्ग में किया था।आप लोगों की जानकारी में लाने के लिए मैने इसे आपके लिए मेरे नाम राशि भाई श्री ज्ञानेश कुमार उपाध्याय जी के ब्लाग ज्ञानघर से लिया है।भाई सहाब श्री ज्ञानेश कुमार उपाध्याय जी  के ब्लाग का लिंक यहाँ दे रहा हूँ आप यहाँ से वहाँ जा सकते हैं।
परम पूजनीय पूर्व सरसंघचालक श्री सुदर्शन जी के वक्तव्य हमें याद रहैं हमारा कर्तव्य पथ आलोकित रहै यही उनको सच्ची श्रद्धाञ्जलि है

एक भारतीय सेठ ने जर्मनी से मैदा बनाने वाली मशीन मंगवाकर व्यवसाय शुरू किया। विदेशी मशीन का अपना जलवा था, खूबसूरत और भव्य दिखने वाली मशीन रंग-ढंग में अद्भुत थी, लेकिन जब मशीन ने काम करना शुरू किया, तो अचानक बंद हो गई। मैकेनिक ने वाशर बदला, मशीन फिर चली और फिर खराब हो गई, वाशर फिर बदला गया, फिर घिस गया। मशीन विफल सिद्ध हुई। मशीन बनाने वाली कंपनी से संपर्क साधा गया, तो पता चला जर्मनी से इंजीनियर के आने में महीने-दो महीने लग जाएंगे। सेठ बहुत परेशान हुआ, तभी उसे किसी ने बताया कि रामगढिय़ा समुदाय पास ही शहर में टिका हुआ है, क्यों नहीं आप किसी रामगढिय़ा को अपनी मशीन दिखवाते हैं। क्या पता वह ठीक कर दे?यह सुनकर सेठ बिगड़ गया, विदेशी मशीन के बारे में देहाती-खानाबदोश रामगढिय़ा क्या जानें? मशीन सुधारने के लिए हाथ भी लगाया, तो और बिगाड़ कर रख देंगे।उस व्यक्ति ने सेठ को समझाया, रामगढिय़ा लोगों को कम मत समझिए, यंत्र व अभियांत्रिकी के मामले में बड़े सिद्ध होते हैं। वैसे भी आपकी मशीन तो महीने भर बाद सुधरेगी, जब जर्मनी से इंजीनियर आएगा, इस बीच बैठने से अच्छा है कि किसी रामगढिय़ा को बुलाकर मशीन दिखलाई जाए और पूछा जाए।
सेठ को यह बात जंच गई। उनसे एक रामगढिय़ा को बुलवाया। बिल्कुल एक आम भारतीय की तरह ठेठ देहाती रामगढिय़ा सेठ के कारखाने पहुंचा। थोड़ी बहु़त बातचीत के बाद सेठ ने उसे मशीन का दर्शन कराया। उसने काफी देर तक मशीन को गौर से देखा, उसके बारे में मशीन चलाने वालों से चर्चा की। उसने कुछ कवरआदि को खोलकर देखा।सेठ ने पूछा, क्या कुछ समझ में आ रहा है?रामगढिय़ा ने जवाब दिया, हां, पता लग गया है। एक जगह वाशर बार-बार टूट जा रहा है, क्योंकि थोड़ा चलते ही मशीन गर्म हो जा रही है।सेठ ने पूछा, यह तो हमें भी पता है, हमें तो यह बताओ कि क्या तुम ठीक कर सकोगे?रामगढिय़ा ने जवाब दिया, हां, ठीक कर दूंगा।सेठ चकित हुआ, पूछा, क्या करोगे?जवाब मिला, कुछ देर का काम है? एक कांटी और हथौड़ी मंगवाइए।सेठ ने डरते हुए ही अपने कर्मचारियों को कांटी और हथौड़ी देने का आदेश दिया।रामगढिय़ा ने मशीन में एक निश्चित स्थान पर कांटी को अड़ाया और हथौड़ी मारकर छेद कर दिया और फिर वाशर बदल दिया। उसने कहा, सेठ जी अब मशीन चलवाइए।सेठ ने पूछा, बन गई क्या? कोई और परेशानी तो नहीं हो जाएगी?रामगढिय़ा ने आश्वस्त किया, घबराइए नहीं, अब कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए।मशीन चलाई गई और खूब देर तक चली, बंद नहीं हुई।सभी चकित और खुश थे। सेठ ने पूछा, तुमने क्या किया?ï क्या खराबी थी?रामगढिय़ा ने जवाब दिया, वाशर को लगातार तेल नहीं मिल रहा था, इसलिए वह कट जा रहा था। उस तक तेल आने का रास्ता तो है, लेकिन घूमकर है, जब तक तेल की बूंद वाशर तक पहुंचती है, तब तक वाशर गर्म होकर कट जाता है। अब मैंने ऐसी जगह पर छेद किया है कि वाशर वाली जगह को लगातार तेल मिलता रहेगा, जिससे वह नहीं घिसेगा, मशीन चलती रहेगी।सेठ बड़ा खुश हुआ। मैदा बनाने का काम चल निकला। सेठ ने रामगढिय़ा को खिलाया-पिलाया। बड़े प्रेम से चर्चा की। कई सवाल पूछने के सिलसिले में एक सवाल यह भी पूछ लिया, क्या तुम ऐसी ही मशीन बना सकते हो?रामगढिय़ा ने जवाब दिया, हां, बना सकता हूं, मेरी बनाई मशीन इतनी सुंदर तो नहीं दिखेगी, लेकिन काम पूरा करेगी।सेठ के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। उसने रामगढिय़ा को नई मशीन बनाने के लिए कह दिया।लगभग महीने भर बाद जर्मनी से इंजीनियर आया, मशीन चलती हुई मिली। उसने पूछताछ की कि क्या खराबी थी, किसने ठीक की।उसे बताया गया कि एक लोकल इंजीनियर ने मशीन ठीक कर दी है। मशीन चलाने वाले ने ही बताया कि रामगढिय़ा ने क्या किया कि मशीन चल पड़ी। जर्मन इंजीनियर के आश्चर्य का ठिकाना न था, उसने अपनी रिपोर्ट लिखी। उसके बाद बताते हैं कि उस कंपनी ने अपनी मशीन में सुधार किया। जो भी मशीन दक्षिण एशिया के गर्म देशों बेची गई, उसमें एक रामगढिय़ा इंजीनियर का आविष्कार भी शामिल था।तो सुदर्शन जी इस कथा की सहायता से यह बता रहे थे कि भारतीयों में कोई कमी नहीं है, जो आदमी गरीब दिखता है, उपेक्षित दिखता है, उसमें भी कोई न कोई टैलेंट है। नई व्यवस्था कुशल भारतीय समुदायों के टैलेंट को भुलाकर काम कर रही है। हम स्वदेशी शक्ति को भुलाकर पश्चिम की ओर भाग रहे हैं। न जाने कितनी ऐसी ही सक्षम जातियों-उपजातियों को इस देश ने भुलाया और मिटाया है।सुदर्शन जी हमेशा याद रहेंगे और उनकी यह कथा मेरे हृदय में हमेशा बसी रहेगी।उनको मेरी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि। आवश्यकता से अधिक स्वाभिमान, सत्ता सुख और पूंजीवादी हवा के कारण निरंतर कमजोर होता और आदर्श गंवाता दक्षिणपंथ अपने एक सशक्त स्तंभ से वंचित हो गया है।

हम सेक्युलर हैं, क्योंकि!



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हम सेक्युलर हैं, क्योंकि!

हम सेक्युलर हैं, क्योंकि?
१. हम भारत के संविधान में निहित प्रावधानों का उल्लंघन करके अल्पसंख्यकों को आरक्षण देते हैं।
२. हम बांग्लादेश के घुसपैठी मुसलमानों का हिन्दुस्तान में सिर्फ़ स्वागत ही नहीं करते, बल्कि राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र बनवाकर भारत की नागरिकता भी देते हैं।
३. हम हिन्दू-तीर्थस्थलों की यात्रा के लिए एक पैसा भी नहीं देते, उल्टे टिकट और अन्य सुविधाओं के लिए सर्विस टैक्स भी वसूलते हैं।
४. हम सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को दरकिनार करके हज़ यात्रियों को हिन्दुओं पर जाजिया टैक्स लगाकर भारी सब्सिडी देते हैं।
५. हम हिन्दुओं के लिए एक पत्नी रखने का कानून बनाते हैं और मुसलमानों के चार पत्नियां रखने के अधिकार को जायज ठहराते हैं।
६. हम हिन्दू लड़कियों के घटते वस्त्र को नारी स्वातंत्र्य का जीवन्त उदाहरण मानते हैं और मुसलमानों की बुर्का प्रथा का समर्थन करते हैं।
७. हम भारत माता और हिन्दू देवी-देवताओं की नंगी तस्वीर बनाने वाले को सर्वश्रेष्ठ पेन्टर का खिताब देते हैं।
८. हम भारत माता को सार्वजनिक रूप से डायन कहने वाले को कैबिनेट मंत्री के पद से सम्मानित करते हैं।
९. हम राष्ट्रगीत "वन्दे मातरम" को अपमानित करने वालों को राज्य और केन्द्र सरकार में ऊंचे ओहदे देते हैं।
१०. हम १५ अगस्त के दिन पाकिस्तानी झंडा फ़हराने वालों और तिरंगा जलानेवालों को दिल्ली में बुलाकर बिरयानी खिलाकर वार्त्ता करते हैं।
११. हम कश्मीर घाटी से हिन्दुओं को जबरन खदेड़े जाने पर चुप्पी साध लेते हैं और असम के कोकराझार के बांग्लादेशियों के विस्थापन को राष्ट्रीय शर्म (शेम) मानते हैं।
१२.हम अमेरिका में बनी फ़िल्म "इनोसेन्स आफ़ मुस्लिम्स" के खिलाफ़ हिन्दुस्तान में हर तरह के प्रदर्शन, हिंसा, दंगा, तोड़फ़ोड़ और आगजनी को जायज मानते हैं।
१३.हम गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगियों में आग लगाकर हिन्दुओं को ज़िन्दा जला देने की घटना पर चुप्पी साध लेते हैं और प्रतिक्रिया में उपजी हिंसा को दुनिया की सबसे बड़ी सांप्रदायिक घटना मानते हैं।
१४.हम देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार मुस्लिम लीग से केरल और केन्द्र में सत्ता की साझेदारी करते हैं और राष्ट्रवादी संगठन आरएसएस पर बार-बार प्रतिबंध लगाते हैं।
१५ हम बाबरी ढांचा गिराने के अपराध में यूपी, एमपी, राजस्थान और सुदूर हिमाचल प्रदेश की सरकारें पलक झपकते बर्खास्त करते हैं तथा कश्मीर में मन्दिरों को तोड़नेवालों के साथ सत्ता की साझेदारी करते हैं।
१६.हम मदरसों में आतंकवाद की शिक्षा देनेवालों को सरकारी अनुदान देते हैं एवं सरस्वती शिशु मन्दिरों पर नकेल लगाते हैं।
१७. हम भारतीय नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रीय खलनायक मानते हैं और इटालियन को राजमाता - Long live our queen.
१८. हम भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल और कन्हैया लाल माणिक लाल मुन्शी के प्रयासों से सोमनाथ मन्दिर के पुनर्निर्माण को सेक्युलर मानते हैं और राम मन्दिर निर्माण को घोर सांप्रदायिक।
१९.हम रामसेतु तोड़कर जलमार्ग बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और बाबरी निर्माण के लिए भी कृतसंकल्प हैं।
२०. हम १९८४ के सिक्खों के कत्लेआम को इन्दिरा गांधी की मृत्यु से उत्पन्न सामान्य प्रतिक्रिया मानते हैं और गुजरात की हिंसा को महानतम सांप्रदायिक घटना।
२१.हम मज़हब के आधार पर देश के विभाजन को मिनारे पाकिस्तान पर जाकर मान्यता देते हैं और अन्यों को भी भविष्य में इसी घटना की पुनरावृत्ति के लिए प्रोत्साहन देते हैं।
२२. हम देश की प्राकृतिक संपदा पर मूल निवासी होने के कारण मुसलमानों का पहला हक मानते हैं और हिन्दुओं (आर्यों) को बाहर से आया हुआ बताते हैं।
२३. हम मस्जिदों में जमा अकूत आग्नेयास्त्रों की खुफ़िया जानकारी प्राप्त होने के बाद भी छापा नहीं मारते हैं और हिन्दू मन्दिरों की संपत्ति छापा डालकर रातोरात ज़ब्त कर लेते हैं।
२४. हम मन्दिरों की संपत्ति और रखरखाव के लिए सरकारी ट्रस्ट बना देते हैं और अज़मेर शरीफ़, ज़ामा मस्ज़िद की संपत्ति से नज़रें फेर लेते हैं।
२५. हम हिन्दुओं के शादी-ब्याह, जन्म-मृत्यु, उत्तराधिकार, जीवन शैली, पूजा-पाठ के लिए सैकड़ों कानून बना देते हैं लेकिन मुस्लिम पर्सनल ला की चर्चा करना भी अपराध मानते हैं।
२६. हम मुसलमानों को रास्ता रोककर नमाज़ पढ़ने की इज़ाज़त देते हैं और मन्दिर प्रांगण में एकत्रित श्राद्धालुओं पर लाठी चार्ज करते हैं।
२७. हम "वीर शिवाजी" पर आधारित टी.वी. सिरीयल पर प्रतिबंध लगाते हैं और "मुगले आज़म" को राष्ट्रीय पुरस्कार देते हैं।
२८. हम मुसलमानों को अपना व्यवसाय खोलने के लिए आसान किश्तों पर ५ लाख रुपए का ऋण कभी न चुकाने के आश्वासन के साथ देते हैं और हिन्दू किसानों को ऋण न चुकाने के कारण आत्महत्या के लिए प्रेरित करते हैं।
२९. हम रमज़ान के महीने में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य गण्यमान व्यक्तियों द्वारा सरकारी पैसों से रोज़ा अफ़्तार का आयोजन करते हैं तथा होली-दिवाली पर एक पैसा भी खर्च नहीं करते।
३०. हम हज़रत मोहम्मद पर डेनमार्क में बने कार्टून पर बलवा करनेवालों पर लाठी के बदले फूल बरसाते हैं और राम-कृष्ण को गाली देनेवालों को पद्म पुरस्कार देते हैं।
३१. हम म्यामार और कोकराझार की घटना पर पूरी मुंबई के यातायात और संपत्ति को उग्र मुस्लिम प्रदर्शनकारियों के हवाले कर देते हैं और हिन्दुओं की बारात पर भी लाठी चार्ज करते हैं।
३२. हम पाकिस्तान से आए हिन्दुओं को ज़बरन भेड़ियों के हवाले कर देते हैं और बांग्लादेशियों के लिए स्वागत द्वार बनाते हैं।
३३. हम जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में "गोमांस पार्टी" का आयोजन करते हैं और बाबा रामदेव के शहद को प्रतिबंधित करते हैं।
३४. हम अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी की शाखाएं देश के कोने-कोने में खोलने के लिए सरकारी पैकेज देते हैं और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का अनुदान रोक देते हैं।
३५. हम आतंकवादियों के घर (आज़मगढ़) जाकर आंसू बहाते हैं और शहीद जवानों की विधवाओं और बच्चों को भगवान भरोसे छोड़ देते हैं।
३६.हम आतंकवादियों से मुठभेड़ को फ़र्ज़ी एनकाउंटर कहते हैं और हिन्दू साधु-सन्तों को आतंकवादी।
३७. हम सलमान रश्दी को भारत आने की अनुमति नहीं देते, तसलीमा नसरीन को भारत में रहने की इज़ाज़त नहीं देते लेकिन वीना मलिक को अनिश्चित काल के लिए सरकारी मेहमान बनाते हैं।

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१. हम भारत के संविधान में निहित प्रावधानों का उल्लंघन करके अल्पसंख्यकों को आरक्षण देते हैं।
२. हम बांग्लादेश के घुसपैठी मुसलमानों का हिन्दुस्तान में सिर्फ़ स्वागत ही नहीं करते, बल्कि राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र बनवाकर भारत की नागरिकता भी देते हैं।
३. हम हिन्दू-तीर्थस्थलों की यात्रा के लिए एक पैसा भी नहीं देते, उल्टे टिकट और अन्य सुविधाओं के लिए सर्विस टैक्स भी वसूलते हैं।
४. हम सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को दरकिनार करके हज़ यात्रियों को हिन्दुओं पर जाजिया टैक्स लगाकर भारी सब्सिडी देते हैं।
५. हम हिन्दुओं के लिए एक पत्नी रखने का कानून बनाते हैं और मुसलमानों के चार पत्नियां रखने के अधिकार को जायज ठहराते हैं।
६. हम हिन्दू लड़कियों के घटते वस्त्र को नारी स्वातंत्र्य का जीवन्त उदाहरण मानते हैं और मुसलमानों की बुर्का प्रथा का समर्थन करते हैं।
७. हम भारत माता और हिन्दू देवी-देवताओं की नंगी तस्वीर बनाने वाले को सर्वश्रेष्ठ पेन्टर का खिताब देते हैं।
८. हम भारत माता को सार्वजनिक रूप से डायन कहने वाले को कैबिनेट मंत्री के पद से सम्मानित करते हैं।
९. हम राष्ट्रगीत "वन्दे मातरम" को अपमानित करने वालों को राज्य और केन्द्र सरकार में ऊंचे ओहदे देते हैं।
१०. हम १५ अगस्त के दिन पाकिस्तानी झंडा फ़हराने वालों और तिरंगा जलानेवालों को दिल्ली में बुलाकर बिरयानी खिलाकर वार्त्ता करते हैं।
११. हम कश्मीर घाटी से हिन्दुओं को जबरन खदेड़े जाने पर चुप्पी साध लेते हैं और असम के कोकराझार के बांग्लादेशियों के विस्थापन को राष्ट्रीय शर्म (शेम) मानते हैं।
१२.हम अमेरिका में बनी फ़िल्म "इनोसेन्स आफ़ मुस्लिम्स" के खिलाफ़ हिन्दुस्तान में हर तरह के प्रदर्शन, हिंसा, दंगा, तोड़फ़ोड़ और आगजनी को जायज मानते हैं।
१३.हम गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगियों में आग लगाकर हिन्दुओं को ज़िन्दा जला देने की घटना पर चुप्पी साध लेते हैं और प्रतिक्रिया में उपजी हिंसा को दुनिया की सबसे बड़ी सांप्रदायिक घटना मानते हैं।
१४.हम देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार मुस्लिम लीग से केरल और केन्द्र में सत्ता की साझेदारी करते हैं और राष्ट्रवादी संगठन आरएसएस पर बार-बार प्रतिबंध लगाते हैं।
१५ हम बाबरी ढांचा गिराने के अपराध में यूपी, एमपी, राजस्थान और सुदूर हिमाचल प्रदेश की सरकारें पलक झपकते बर्खास्त करते हैं तथा कश्मीर में मन्दिरों को तोड़नेवालों के साथ सत्ता की साझेदारी करते हैं।
१६.हम मदरसों में आतंकवाद की शिक्षा देनेवालों को सरकारी अनुदान देते हैं एवं सरस्वती शिशु मन्दिरों पर नकेल लगाते हैं।
१७. हम भारतीय नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रीय खलनायक मानते हैं और इटालियन को राजमाता - Long live our queen.
१८. हम भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल और कन्हैया लाल माणिक लाल मुन्शी के प्रयासों से सोमनाथ मन्दिर के पुनर्निर्माण को सेक्युलर मानते हैं और राम मन्दिर निर्माण को घोर सांप्रदायिक।
१९.हम रामसेतु तोड़कर जलमार्ग बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और बाबरी निर्माण के लिए भी कृतसंकल्प हैं।
२०. हम १९८४ के सिक्खों के कत्लेआम को इन्दिरा गांधी की मृत्यु से उत्पन्न सामान्य प्रतिक्रिया मानते हैं और गुजरात की हिंसा को महानतम सांप्रदायिक घटना।
२१.हम मज़हब के आधार पर देश के विभाजन को मिनारे पाकिस्तान पर जाकर मान्यता देते हैं और अन्यों को भी भविष्य में इसी घटना की पुनरावृत्ति के लिए प्रोत्साहन देते हैं।
२२. हम देश की प्राकृतिक संपदा पर मूल निवासी होने के कारण मुसलमानों का पहला हक मानते हैं और हिन्दुओं (आर्यों) को बाहर से आया हुआ बताते हैं।
२३. हम मस्जिदों में जमा अकूत आग्नेयास्त्रों की खुफ़िया जानकारी प्राप्त होने के बाद भी छापा नहीं मारते हैं और हिन्दू मन्दिरों की संपत्ति छापा डालकर रातोरात ज़ब्त कर लेते हैं।
२४. हम मन्दिरों की संपत्ति और रखरखाव के लिए सरकारी ट्रस्ट बना देते हैं और अज़मेर शरीफ़, ज़ामा मस्ज़िद की संपत्ति से नज़रें फेर लेते हैं।
२५. हम हिन्दुओं के शादी-ब्याह, जन्म-मृत्यु, उत्तराधिकार, जीवन शैली, पूजा-पाठ के लिए सैकड़ों कानून बना देते हैं लेकिन मुस्लिम पर्सनल ला की चर्चा करना भी अपराध मानते हैं।
२६. हम मुसलमानों को रास्ता रोककर नमाज़ पढ़ने की इज़ाज़त देते हैं और मन्दिर प्रांगण में एकत्रित श्राद्धालुओं पर लाठी चार्ज करते हैं।
२७. हम "वीर शिवाजी" पर आधारित टी.वी. सिरीयल पर प्रतिबंध लगाते हैं और "मुगले आज़म" को राष्ट्रीय पुरस्कार देते हैं।
२८. हम मुसलमानों को अपना व्यवसाय खोलने के लिए आसान किश्तों पर ५ लाख रुपए का ऋण कभी न चुकाने के आश्वासन के साथ देते हैं और हिन्दू किसानों को ऋण न चुकाने के कारण आत्महत्या के लिए प्रेरित करते हैं।
२९. हम रमज़ान के महीने में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य गण्यमान व्यक्तियों द्वारा सरकारी पैसों से रोज़ा अफ़्तार का आयोजन करते हैं तथा होली-दिवाली पर एक पैसा भी खर्च नहीं करते।
३०. हम हज़रत मोहम्मद पर डेनमार्क में बने कार्टून पर बलवा करनेवालों पर लाठी के बदले फूल बरसाते हैं और राम-कृष्ण को गाली देनेवालों को पद्म पुरस्कार देते हैं।
३१. हम म्यामार और कोकराझार की घटना पर पूरी मुंबई के यातायात और संपत्ति को उग्र मुस्लिम प्रदर्शनकारियों के हवाले कर देते हैं और हिन्दुओं की बारात पर भी लाठी चार्ज करते हैं।
३२. हम पाकिस्तान से आए हिन्दुओं को ज़बरन भेड़ियों के हवाले कर देते हैं और बांग्लादेशियों के लिए स्वागत द्वार बनाते हैं।
३३. हम जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में "गोमांस पार्टी" का आयोजन करते हैं और बाबा रामदेव के शहद को प्रतिबंधित करते हैं।
३४. हम अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी की शाखाएं देश के कोने-कोने में खोलने के लिए सरकारी पैकेज देते हैं और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का अनुदान रोक देते हैं।
३५. हम आतंकवादियों के घर (आज़मगढ़) जाकर आंसू बहाते हैं और शहीद जवानों की विधवाओं और बच्चों को भगवान भरोसे छोड़ देते हैं।
३६.हम आतंकवादियों से मुठभेड़ को फ़र्ज़ी एनकाउंटर कहते हैं और हिन्दू साधु-सन्तों को आतंकवादी।
३७. हम सलमान रश्दी को भारत आने की अनुमति नहीं देते, तसलीमा नसरीन को भारत में रहने की इज़ाज़त नहीं देते लेकिन वीना मलिक को अनिश्चित काल के लिए सरकारी मेहमान बनाते हैं।

भारतीय समाज, विविधता, अनेकता एवं एकात्मता!


मैं ब्लागरों के सामान्य लक्षणों से ग्रस्त एक ब्लागर जब घूम रहा था ब्लाग जंगल में तो मुझे कुछ हीरे मिल गये जो मेरे पाठकों को उपयुक्त हो सकते थे अतः में साभार उठा लाया हुँ आपके लिए-यह लाया हूँ मैं आपके लिए http://insidestory.leadindiagroup.com से बहुत बहुत आभार इस साइट का तथा लेखक महोदय का 

भारत का समाज अत्यंत प्रारम्भिक काल से ही अपने अपने स्थान भेद, वातावरण भेद, आशा भेद वस्त्र भेद, भोजन भेद आदि विभिन्न कारणों से बहुलवादी रहा है। यह तो लगभग वैदिक काल में भी ऐसा ही रहा है अथर्ववेद के 12वें मण्डल के प्रथम अध्याय में इस पर बड़ी विस्तृत चर्चा हुई है एक प्रश्न के उत्तर में ऋषि यह घोषणा करते हैं कि
जनं विभ्रति बहुधा, विवाचसम्, नाना धर्माणंम् पृथ्वी यथौकसम्।
सहस्र धारा द्रवीणस्यमेदूहाम, ध्रिवेन धेनुंरनप्रस्फरत्नी।।
अर्थात विभिन्न भाषा, धर्म, मत आदि जनों को परिवार के समान धारण करने वली यह हमारी मातृभूमि कामधेनु के समान धन की हजारों धारायें हमें प्रदान करें।
विभिन्नता का यह स्तर इतना गहरा रहा कि केवल मनुष्य ही नहीं अपितु प्रकृति में इसके प्रवाह में चलती रही तभी तो हमारे यहां यह लोक मान्यता बन गयी कि कोस-कोस पर बदले पानी चार कोस पर वाणी।
यहां वाणी दो अर्थों में प्रयोग होता है। वाणी एक बोली के अर्थ में और पहनावे के अर्थ पानी भी दो अर्थी प्रयोग एक सामाजिक प्रतिष्ठा के अर्थ में दूसरा जल के।
इस विविधता में वैचारिक विविधता तो और भी महत्वपूर्ण है। संसार में पढ़ाये जाने वाले छः प्रकार के दर्षन का विकास भारत में ही हुआ कपिल, कणाद, जैमिनी, गौतम, प्रभाकर, वैशेषिक आदि अनेक प्रकार की परस्पर विरोधी विचार तरणियां (शृंखला) इसी पवित्र भूमि पर पली बढ़ी और फली फूली वैदिक मान्यताओं का अद्वैत जब कर्मकाण्डो के आडम्बर से घिर गया तो साक्य मूनि गौतम अपने बौद्ध दर्शन से समाज को एक नयी दिशा देने का प्रयास किया।
उनके कुछ वर्षों बाद केरल एक विचारक और दार्शनिक जगत्गुरु शंकराचार्य ने अपने अद्वैत दर्शन के प्रबल वेग में बुद्धवाद को भी बहा दिया। और इतना ही नहीं वरन पूरे भारत में वैदिक मत की पुर्नप्रतिष्ठा कर दी। लेकिन जगत गुरु शंकर का यह अद्वैत की विभिन्न रूपों में खण्डित होता रहा।
इस अद्वैत दर्शन को आचार्य रामानुज ने विशिष्ट अद्वैत के रूप में खण्डित कर दिया महावाचार्य ने द्वैत वाद के रूप में खण्डित कर दिया, वल्लभाचार्य ने द्वैत अद्वैत के रूप में खण्डित कर दिया तिम्वाकाचार्य ने द्वैतवाद के रूप में खण्डित कर दिया और अन्त में चैतन्य महाप्रभु ने अचिन्त्य भेदा भेद के रूप में खण्डित कर दिया। इस खण्डन-मण्डन और प्रतिष्ठापन की परम्परा को पूरा देश सम्मान के साथ स्वीकारता रहा। यहां तक कि हमने चार्वाक को भी दार्शनिको की श्रेणी में खड़ा कर लिया लेकिन वैदिकता के विरोध में कोई फतवा नहीं जारी किया गया।
यहां तो संसार ने अभी-अभी देखा है कि शैटनिक वरसेज के साथ क्या हुआ बलासफेमी की लेखिका डॉ. तहमीना दुरार्ती को देश छोड़ कर भागना पड़ा, तसलीमा नसरीन की पुस्तक लज्जा से उन लोगों को लज्जा भी नहीं आती और नसरीन के लिए उसकी मातृभूमि दूर हो गयी है। लेकिन भारत की विविधता हरदम आदरणीय रही है।
इसी का परिणाम रहा है कि यहां 33 करोड़ देवी-देवता बने सच में इससे बड़ा लोकतांत्रिक अभियान और क्या हो सकता है हर स्थिति का इसके स्वभाव के अनुरूप उसे पूजा करने के लिए उसका एक आदर्श देवता तो होना ही चाहिए। यही तो लोकतंत्र है।
लेकिन इस विविधता में भी चिरन्तन सत्य के प्रति समर्पण सबके चित्त में सदैव बना रहा। तभी तो भारत जैसे देश में जहां छः हजार से ज्यादा बोलियां बोली जाती हैं वहां गंगा, गीता, गायत्री, गाय और गोविन्द के प्रति श्रद्धा समान रूप से बनी हुई है। केरल में पैदा होने वाला नारियल जब तक वैष्णो देवी के चरण में चढ़ नहीं जाता है तब तक पूजा अधूरी मानी जाती है। आखिर काशी के गंगाजल से रामेश्वरम् महादेव का अभिषेक करने पर ही भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। भारत के अन्तिम छोर कन्याकुमारी अन्तद्वीप में तपस्या कर रही भगवती तृप सुंदरी का लक्ष्य उत्त में कैलाश पर विराजमान भगवान चन्द्रमौलीस्वर तो ही है।
भारत में जो भी आया, वह उसके भौगोलिक सौन्दर्य और भौतिक सम्पन्न्ता से तो अभिभूत हुआ ही, बौद्धिक दृष्टि से वह भारत का गुलाम होकर रह गया। वह भारत को क्या दे सकता था? भौतिक भारत को उसने लूटा लेकिन वैचारिक भारत के आगे उसने आत्म-समर्पण कर दिया। ह्वेन-सांग, फाह्यान, इब्न-बतूता, अल-बेरूनी, बर्नियर जैसे असंख्य प्रत्यक्षदर्शियों के विवरण इस सत्य को प्रमाणित करते हैं।
जिस देश के हाथों में वेद हों, सांख्य और वैशेषिक दर्शन हो, उपनिषदें हों, त्रिपिटक हो, अर्थशास्त्र हो, अभिज्ञानशाकुंतलम् हो, रामायण और महाभारत हो, उसके आगे बाइबिल और कुरान, मेकबेथ और प्रिन्स, ओरिजिन आॅफ स्पेसीज या दास कैपिटल आदि की क्या बिसात है? दूसरे शब्दों में भारत की बौद्धिक क्षमता ने उसकी हस्ती को कायम रखा।
भारत के इस अखंड बौद्धिक आत्मविश्वास ने उसके जठरानल को अत्यंत प्रबल बना दिया। उसकी पाचन शक्ति इतनी प्रबल हो गई कि इस्लाम और ईसाइयत जैसे एकचालकानुवर्तित्ववाले मजहबों को भी भारत आकर उदारमना बनना पड़ा। भारत ने इन अभारतीय धाराओं को आत्मसात कर लिया और इन धाराओं का भी भारतीयकरण हो गया। मैं तो यहां तक कहता हूं कि इस्लाम और ईसाइयत भारत आकर उच्चतर इस्लाम और उच्चतर ईसाइयत में परिणत हो गए।
धर्मध्वजाओं और धर्मग्रंथों पर आधारित इन मजहबों में कर्मफल और पुनर्जन्म का प्रावधान कहीं नहीं है लेकिन इनके भारतीय संस्करण इन बद्धमूल भारतीय धारणाओं से मुक्त नहीं हैं। भक्ति रस में डूबे भारतीयों के मुकाबले इन मजहबों के अभारतीय अनुयायी काफी फीके दिखाई पड़ते हैं।
भारतीय मुसलमान और भारतीय ईसाई दुनिया के किसी भी मुसलमान और ईसाई से बेहतर क्यों दिखाई पड़ता है? इसीलिए कि वह पहले से उत्कृष्ट आध्यात्मिक और उन्नत सांस्कृतिक भूमि पर खड़ा है। यह धरोहर उसके लिए अयत्नसिद्ध है। उसे सेत-मेंत में मिली है। यही भारत का रिक्थ है।
सनातन संस्कृति के कारण इस पावन धरा पर एक अत्यंत दिव्य विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र निर्मित हुआ। प्राकृतिक पर्यावरण कठिन तप, ज्ञान, योग, ध्यान, सत्संग, यज्ञ, भजन, कीर्तन, कुम्भ तीर्थ, देवालय और विश्व मंगल के शुभ मानवीय कर्म एवं भावों से निर्मित इस दिव्य इलेक्ट्रो-मैगनेटिक फील्ड से अत्यंत प्रभावकारी विद्युत चुम्बकीय तरंगों का विकिरण जारी है, इसी से समग्र भू-मण्डल भारत की ओर आकर्षित होता रहा है और होता रहेगा।
भारतीय संस्कृति की यही विकिरण ऊर्जा ही हमारी चिरंतन परम्परा की थाती है। भूगोल, इतिहास और राज्य व्यवस्थाओं की क्षुद्र संकीर्णताओं के इतर प्रत्येक मानव का अभ्युदय और निःश्रेयस ही भारत का अभीष्ट है। साम्राज्य भारत का साध्य नहीं वरन् साधन है।यहां तो सृष्टि का कण-कण अपनी पूर्णता और दिव्यता के साथ खिले, इसका सतत् प्रयत्न किया जाता है।
विश्व सभ्यता और विचार-चिन्तन का इतिहास काफी पुराना है। लेकिन इस समूची पृथ्वी पर पहली बार भारत में ही मनुष्य की विराट रहस्यमयता पर जिज्ञासा का जन्म हुआ। सृष्टि अनन्त रहस्य वाली है ही। भारत ने दोनों चुनौतियों को निकट नजदीक से देखा। छोटा-सा मनुष्य विराट सम्भावनाआंे से युक्त है। विराट सृष्टि में अनंत सम्भावनाएं और अनंत रहस्य हैं।
जितना भी जाना जाता है उससे भी ज्यादा बिना जाने रह जाता है। सो भारत के मनुष्य ने सम्पूर्ण मनुष्य के अध्ययन के लिए स्वयं (मैं) को प्रयोगशाला बनाया। भारत ने समूची सृष्टि को भी अध्ययन का विषय बनाया। यहां बुद्धि के विकास से ‘ज्ञान’ आया। हृदय के विकास से भक्ति। भक्त और ज्ञानी अन्ततः एक ही निष्कर्ष पर पहुंचे।
भक्त अंत में ज्ञानी बना। भक्त को अन्ततः व्यक्ति और समष्टि का एकात्म मिला। द्वैत मिटा। अद्वैत का ज्ञान हो गया। ज्ञानी को अंत में बूंद और समुद्र के एक होने का साक्षात्कार हुआ। व्यक्ति और परमात्मा, व्यष्टि और समष्टि की एक एकात्मक प्रतीति मिली। ज्ञानी आखिरकार भक्त बना।
हजारों वर्षों से यह परम्परा रही है कि बद्रीधाम और काठमाण्डू के पशुपतिनाथ का प्रधान पुजारी केरल का होगा और रामेश्वरम् और श्रृंगेरीमठ का प्रधान पुजारी काशी का होगा यही तो विविधता में एकता का वह जीवन्त सूत्र है जो पूरे भारत को अपने में जोड़े हुए है।
पाकिस्तान स्थित स्वातघाटी के हिंगलाज शक्तिपीठ के प्रति पूरे भारत में समान रूप आस्था और आदर है। तो समग्र हिमालय को पूरा भारत देवताओं की आत्मा कहता है इसी कारण हमारे ऋषियों ने पूरे भारत के पहाड़ों, नदियों और वनों को सम्मान में वेदों में गीत गाये। कैसे कोई भारतीय भूल सकता है उस सिन्धु नदी को जिसके तट पर वेदों की रचना हुई।
विविधता और अनेकता भारतीय समाज की पहचान है। विविधता के कारण ही भारत देष में बहुरूपता के दर्षन होते हैं। लेकिन यही गुण भारतीय समाज को समृ़द्ध कर एक सूत्र में बांधने का कार्य करता है। हो भी क्यों न? क्योंकि हम उस सम्पन्न परपंरा के वाहक हैं जिसमें वसुधैव कुटुम्बकम की भावना निहित है।

Saturday, October 20, 2012

धर्म क्या है व क्या है सम्प्रदाय और क्या है साम्प्रदायिकता


आजकल हम राजनैतिक हल्को में यह बात सुनते रहते है कि साम्प्रदायिकों का साथ नही देना है।फलां दल साम्प्रदायिक है फलां दल धर्म निरपेक्ष है।तो बार बार इस शब्द कोसु्नने के बाद मैने अनेक लोगों से चर्चा की अनेको कितावों का अध्ययन किया ओर जो जाना सो आपसे बाँट रहा हूँ अगर आपको और भी जानकारी है तो देने का प्रयास करना।ज्ञान वाँटने से बढता है।
धर्म हमें उच्चादर्शों के प्रति श्रद्धावान बनाता है।प्रेरणा प्रदान करता है कि हमारा हृदय अहंकार से नितान्त दूर रहे या कहे कि अहंशून्य हो जहाँ घमण्ड का  विल्कुल भी स्थान न हो और जहाँ अहं नही होगा वहाँ विवाद की  गुंजाइस नही होगी।वहाँ सरलता व सज्जनता होगी सरलता व सज्जनता का ठोंग नही होगा।जहाँ सरलता होगी वहीं सात्विकता पनपेगी और एसे माहौल में ही दैवीय विभूतियाँ जन्म लेती हैं। जो जितने अंशो में इस सरलता सात्विकता को धारण करता है वह उसी अनुपात में धार्मिक है। इसी धार्मिकता का आचरण ही धर्म कहलाता है।यह धर्म हमें देवत्व की ओर ले चलता है।धर्म हमे उदार बनाता है और आत्म विस्तार का उपदेश देता है।
संत नामदेव का नाम शायद आपने सुना होगा एक बार उन्होने अपने खाने के लिए रोटी बनायी कुत्ता आया और रोटी इनके हाथ से छीन कर ले गया।अब सन्त नामदेव उसके पीछे देसी घी का कटोरा लेकर भाग रहे हैं और वे उसमें देख रहै है परम पिता परमात्मा का रुप कह रहै है  ”प्रभु रुखी रोटी न खाऔ थोड़ा घी भी लेते जाओ।” ऐसी सरलता ऐसा विश्वास कि यह कुत्ता नही प्रभु का ही तो रुप है। सम्पूर्ण समाज को प्रभु का रुप मानकर देखने वाला यह धर्म ही तो है। धर्म हमे किसी का विरोधी नही बनाता है वह विरोधी है तो केवल अन्याय का धर्म हमें डरपोक भी नही बनाता तभी तो उस वनवासी राम ने जगंली लोगों व जानवरों को एकत्र कर अन्याय के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया पता था कि हम पर साधन भी नही हैं कहाँ वनवासी वन वन भटकने वाला  मैं राम कहाँ लंका की सत्ता सम्पन्न ही नही अनेकों उपनिवेशों का मालिक रावण ।कहाँ केवल आयुधों के सरल से जानकार राम कहाँ तत्कालीन आयुध प्रणाली का प्रवल साधक व प्रवल प्रयोक्ता ही नही यह कहना भी अतिश्योक्ति नही होगी कि प्रवल उत्पादक रावण जिसे तत्कालीन समय के आयुध प्रदान कर्ता ब्रह्म, विष्णु व महेश तीनों ही शक्तियों से वरदान मिला हुआ था और जिस रावण से धनपति कुबेर, स्वर्गपति इन्द्र व मृत्यु का देवता काल भी डरते थे एसे रावण से टक्कर लेना आसान नही था शायद अगर वह व्यक्ति धर्म का साधक न रहा होता तो शायद सोच सोच कर ही मर जाता।इसके अलावा अनेकों उदा. धर्म मार्ग पर चलने वालो के मिल जाएगें।
धर्म की शिक्षा है आत्मवत सर्वभूतेषु एवं वसुधैव कुटुम्वकम इसी कारण कोई महान पुरुष अपने आप को जाति विरादरी या भौगोलिक सीमाओं मे नही बँधा होता है।

Tuesday, October 16, 2012

भ्रष्टाचार के खिलाफ मुंह बंद रखें!-भारत के प्रधान मंत्री जी का वक्तव्य



मैने यह लेख साभार प्रवत्ता से लिया है क्योकि यह एसा सनसनी खेज मामला है कि  प्रधान मंत्री जिनका पूरा मंत्री मण्डल ही नही खुद व कांग्रेस के चालक सभी घोटालों में व्यस्त है तो वे ये चाहते है कि कोई उनको भ्रष्टाचार करने से न रोके वे खाते रहैं जनता चुपचाप उन्हैं खिलाती रहै। तो पढ़े यह आलेख 
  • लेखक परिचय

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

    आस्तिक, हिन्दू! तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष मेहनत-मजदूरी जंगलों व खेतों में, 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे और 20 वर्ष 09 माह 05 दिन दो रेलों में सेवा के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्‍लेषक, टिप्पणीकार, कवि और शोधार्थी! छोटे बच्चों, कमजोर व दमित वर्गों, आदिवासियों और मजबूर औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र "प्रेसपालिका" का प्रकाशक एवं सम्पादक! 1993 में स्थापित और वर्तमान में देश के 20 राज्यों में सेवारत राष्ट्रीय संगठन ‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (बास-BAAS) का मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष! राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स वेलफेयर एसोसिएशन, मुख्यालय-लखनऊ, उत्तर प्रदेश!

देशभक्त, जागरूक और सतर्क लोगों को इस बात पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना होगा कि भ्रष्ट जन राजनेताओं से कहीं अधिक भ्रष्ट, देश की अफसरशाही है और पूर्व अफसर से राजनेता बने जन प्रतिनिधि उनसे भी अधिक भ्रष्ट और खतरनाक होते हैं। इन्हें किस प्रकार से रोका जावे, इस बारे में गहन चिंतन करने की सख्त जरूरत है, क्योंकि ऐसे पूर्व भ्रष्ट अफसरों को संसद और विधानसभाओं में भेजकर देश की जनता खुद अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है! 
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
10 अक्टूबर को नयी दिल्ली में सीबीआई और भ्रष्टाचार निरोधी ब्यूरो का 19वां सम्मेलन आयोजित किया गया।जिसमें मूल रूप से जवाबदेही (लेकिन किसकी ये ज्ञात नहीं) और पारदर्शिता (किसके लिये) तय करने के लिये भ्रष्टाचार निरोधक कानून में बदलाव करने पर कथित रूप से विचार किया गया। लेकिन आश्‍चर्यजनक रूप से सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए देश के प्रधानमन्त्री ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अधिक चिल्लाचोट करना ठीक नहीं है! उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों द्वारा आवाज उठाना एक प्रकार से भ्रष्टाचार का दुष्प्रचार करना है, जिससे देश के अफसरों का मनोबल गिरता है और विश्‍व के समक्ष देश की छवि खराब होती है। इसलिये उन्होंने उन लोगों को जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं को एक प्रकार से अपना मुंह बन्द रखने को की सलाह दी है। दूसरी ओर प्रधानमन्त्री ने माना है कि देश की आर्थिक तरक्की के साथ-साथ देश में भ्रष्टाचार भी तेजी से बढा है! वहीं उन्होंने अन्य कुछ बातों के अलावा इस बात पर गहरी चिन्ता व्यक्त की, कि ईमानदार अफसरों और कर्मचारियों को बेवजह भ्रष्ट कहकर बदनाम किया जा रहा है, जो ठीक नहीं है, क्योंकि इससे उनका मनोबल गिरता है! उन्होंने माना कि भ्रष्टाचार के अधिकतर बड़े मामले कारोबारी कम्पनियों से सम्बन्धित हैं। (जबकि इन कम्पनियों को खुद प्रधानमन्त्री ही आमन्त्रित करते रहे हैं!) जिन्हें रोकने और दोषियों को सजा देने के लिये नये तरीके ढूँढने और नये कानून बनाने की जरूरत है| प्रधानमन्त्री ने भ्रष्टाचार को रोकने के लिये सख्त रवैया अपनाये जाने की औपचारिकता को भी दोहराया।
प्रधानमन्त्री का उपरोक्त बयान इस बात को साफ लफ्जों में इंगित करता है कि उनको भ्रष्टाचार या भ्रष्टाचार से बेहाल देशवासियों की नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार के कारण संसार के समक्ष देश के बदनाम होने की और देश के अफसरों को परेशान किये जाने की सर्वाधिक चिन्ता है। सच में देखा जाये तो ये बयान भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश के प्रधानमन्त्री का कम और एक अफसर या एक रूढिवादी परिवार के मुखिया का अधिक प्रतीत होता है। वैसे भी इन दोनों बातों में कोई विशेष अन्तर नहीं है, क्योंकि भारत की अफसरशाही देश का वो चालाक वर्ग है, जो शासन चलाने में सर्वाधिक रूढिवादी है। अफसर कतई भी नहीं चाहते कि देश में अंग्रेजी शासन प्रणाली की शोषणकारी रूढियों को बदलकर लोक-कल्याणकारी नीतियों को लागू किया जावे।
डॉ. मनमोहन सिंह का उपरोक्त बयान इस बात को प्रमाणित करता है कि वे एक अफसर पहले हैं और एक लोकतान्त्रिक देश के प्रमुख बाद में, इसलिये देश के लोगों द्वारा उनसे इससे अधिक उम्मीद भी नहीं करनी चाहिये! वे तकनीकी रूप से भारत के प्रधानमन्त्री जरूर हैं, लेकिन जननेता नहीं, राष्ट्रनेता या लोकप्रिय नेता नहीं, बल्कि ऐसे नेता हैं, जिन्हें देश की जनता के हितों का संरक्षण करने के लिये नहीं, बल्कि राजनैतिक हितों का संरक्षण करने के लिये; इस पद पर बिठाया गया है। जो एक जननेता की भांति नहीं, बल्कि एक अफसर और एक सीईओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) की भांति देश को चलाते हुए अधिक प्रतीत होते रहे हैं।
इस बारे में, एक पुरानी घटना का जिक्र करना जरूरी समझता हूँ, जब मैं रेलवे में सेवारत था। एक काम को एक अधिकारी द्वारा इस कारण से दबाया जा रहा है, क्योंकि उन्हें बिना रिश्‍वत के किसी का काम करने की आदत ही नहीं थी! जब मुझे इस बात का ज्ञान हुआ, तो मैंने उससे सम्पर्क किया। उसने परोक्ष रूप से मुझसे रिश्‍वत की मांग कर डाली। मैंने रिश्वत की राशि एकत्र करने के लिये उससे कुछ समय मांगा और मैंने इस समय में रिश्‍वत नहीं देकर; उस भ्रष्टाचारी के काले कारनामों के बारे में पूरी तहकीकात करके, अनेक प्रकरणों में उसके द्वारा अनियमितता, भेदभाव और मनमानी बरतने और रिश्‍वत लेकर अनेक लोगों को नियमों के खिलाफ लाभ पहुँचाने के सबूत जुटा लिये और इस बात की विभाग प्रमुख को लिखित में जानकारी दी। इस जानकारी को सूत्रों के हवाले से स्थानीय दैनिक ने भी खबर बनाकर प्रकाशित कर दिया।
विभाग प्रमुख की ओर से भ्रष्टाचारी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने के बजाय, मुझसे लिखित में स्पष्टीकरण मांगा गया कि मैंने लिखित में आरोप लगाकर और एक रेलकर्मी को बदनाम करने की शिकायत करके, रेलवे की छवि को नुकसान पहुँचाने का कार्य किया है। जिसके लिये मुझसे कारण पूछा गया कि क्यों ना मेरे विरुद्ध सख्त अनुशासनिक कार्यवाही की जावे? खैर…इस मामले को तो मैंने अपने तरीके से निपटा दिया, लेकिन इस देश के प्रधानमन्त्री आज इसी सोच के साथ काम कर रहे हैं कि भ्रष्टाचारियों के मामले में आवाज उठाने से देश की छवि खराब हो रही है और अफसरों का मनोबल गिर रहा है।
एक अफसर की सोच के साथ-साथ प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह का बयान एक रूढिवादी परिवार प्रमुख का बयान भी लगता है, हमें इसे भी समझना होगा। भारत में 90 फीसदी से अधिक मामलों में स्त्रियों के साथ घटित होने वाली छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न की घटनाओं को रूढिवादी परिवारों में यही कहकर दबा दिया जाता है कि ऐसा करने से परिवार की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचेगा और परिवार के साथ-साथ ऐसी स्त्री की छवि को नुकसान होगा। शासन चलाने में अंग्रेजों की दैन इसी शोषणकारी रूढिवादी व्यवस्था और जनता को अपनी गुलाम बनाये रखने की रुग्ण अफसरी प्रवृत्ति का निर्वाह करते हए प्रधानमन्त्री देशवासियों को सन्देश देना चाह रहे हैं कि भ्रष्ट अफसरों और भ्रष्ट व्यवस्था के बारे में बातें करने और आवाज उठाने से अफसरों की छवि खराब होती है और विदेशों में देश की प्रतिष्ठा दाव पर लगती है। जिसका सीधा और साफ मतलब यही है कि प्रधानमन्त्री आज भी देशवासियों के लिये कम और भ्रष्ट अफसरशाही के लिये अधिक चिन्तित हैं।
यह इस देश का दुर्भाग्य है कि भ्रष्टाचार के जरिये अनाप-शनाप दौलत कमाने वाने पूर्व अफसरों की संख्या दिनोंदिन राजनीति में बढती जा रही है और ऐसे में आने वाला समय पूरी तरह से भ्रष्ट अफसरशाही के लिये अधिक मुफीद सिद्ध होना है। ऐसे जननेता जनता को कम और लोकसेवक से लोकस्वामी बन बैठे अफसरों के हित में काम करके अधिक से अधिक माल कमाने और देश को अपनी बपौती समझने वाले होते हैं।
ऐसे हालात में देशभक्त, जागरूक और सतर्क लोगों को इस बात पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना होगा कि भ्रष्ट जन राजनेताओं से कहीं अधिक भ्रष्ट, देश की अफसरशाही है और पूर्व अफसर से राजनेता बने जन प्रतिनिधि उनसे भी अधिक भ्रष्ट और खतरनाक होते हैं। इन्हें किस प्रकार से रोका जावे, इस बारे में गहन चिंतन करने की सख्त जरूरत है, क्योंकि ऐसे पूर्व भ्रष्ट अफसरों को संसद और विधानसभाओं में भेजकर देश की जनता खुद अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है!

Monday, October 15, 2012

है हिन्दु युवा अब जाग जाग भारत माँ तुझे बुलाती है।


जिस हिन्दू ने नभ में जाकर, नक्षत्रो को दी है संज्ञा.

जिसने हिमगिरी का वक्ष चीर, भू को दी है पावन गंगा.

जिसने सागर की छाती पर,पाषाणों को तैराया है.

हर वर्तमान की पीड़ा को, जिसने इतिहास बनाया है.

जिसके आर्यों ने उदघोष किया,"कृण्वन्तो विश्वमार्यम" का.

जिसका गौरव कम कर न सकी, रावण की स्वर्णमयी लंका.

जिसके यज्ञो का एक हव्य, सौ-सौ पुत्रोँ का जनक रहा.

जिसके आँगन में भयाक्रांत,धनपति बरसाता कनक रहा.

जिसके पावन बलिष्ठ तन की, रचना तन दे दधीच ने की.

राघव ने वन-वन भटक-भटक, जिस तन में प्राणप्रतिष्ठा की.

जौहर कुंडो में कूद-कूद , सतियो ने जिसको दिया सत्व.

ऋषियों ऋषि पुत्रों ने जिसमे, चिर बलिदानी भर दिया तत्व.

वह शाश्वत हिन्दू जीवन क्या, स्मरणीय मात्र रह जाएगा?

इसकी पावन गंगा का जल, क्या नालों में बह जाएगा?

इसके गंगाधर शिवशंकर, क्या ले समाधि सो जायेंगे?

इसके पुष्कर, इसके प्रयाग, क्या गर्त मात्र रह जायेंगे?

यदि तुम ऐसा नहीं चाहते,तो फिर तुमको जगना होगा.

हिन्दू राष्ट्र का बिगुल बजाकर, दानव दलको दलना होगा.

Sunday, October 14, 2012

संप्रदाय क्या है ?

 आखिर यह सम्प्रदाय क्या चीज है जिसने भारतीय जनमानस व भारतीय सत्ताधीशों के दिमागों को दिशाहीन कर दिया है।तो इस संप्रदाय की परिभाषा क्या है यह जानने के लिए मैने कई पुस्तकों को पढ़ डाला तथा उससे जो सार ग्रहण किया वह यह है।
  सम्प्रदाय एसे समाज को कहा जाता है जिसका कोई प्रवर्तक या मसीहा या पैगंवर होता है।और उन मसीहा या पैगंवर ने किसी पुस्तक या किताब द्वारा अपने सिद्धांतो को जनता तक पहुचाया होता है या आगे आने वाले समाज को यह किताब शिक्षा प्रदान करती है। सीधी कहने की बात यह है कि जो महान लोग समाज में धार्मिक व सामाजिक क्रांति पैदा की जाती है और उनके द्वारा एक नया सिद्धांत पैदा किया जाता है तथा लोग उस सिद्धांत का अनुसरण करते है  तो वे सामाजिक क्रांति के जनक व्यक्ति मसीहा, प्रवर्तक या पैगंबर कहलाते है व उनका चलाया गया सिद्धांत सम्प्रदाय कहलाता है।जैसे महर्षि दयानन्द जी ने एक युग क्रांति पैदा की तथा एक नये समाज आर्य समाज की स्थापना की तो महर्षि दयानन्द जी उसके प्रवर्तक या पैगंवर हुए तथा यह आर्य समाज नाम का एक सम्प्रदाय चल निकला इनकी पुस्तक है सत्यार्थ प्रकाश।इसी तरह कुछ पुरातन हिन्दुस्तानी समप्रदाय है भगवान महावीर द्वारा चलाया गया जैन सम्प्रदाय जिसे आज बिना जाने समझे धर्म कहा जाता है सत्यता  में जैन  तथा भगबान वुद्ध द्वारा चलाया गया संप्रदाय वौद्ध संप्रदाय  ही हैं ।वौद्धों की धार्मिक पुस्तक त्रिपिटक है। इसी  प्रकार  गुरु नानक जी द्वारा चलाया गया सिख धर्म भी हिन्दुस्थानी या हिन्दु  धर्म का  सम्प्रदाय ही हैं व गुरू ग्रंथ साहिब  इस संप्रदाय  की धार्मिक पुस्तक है।ये सभी महान पुस्तके हमारे जैन,आर्य,वौद्ध,सिक्ख बंधुओं को धार्मिक जानकारी के साथ साथ सामाजिक जीवन मंत्र भी उपलब्ध कराती हैं।
       अब विदेशी सम्प्रदायों की बात करें तो पारसी सम्प्रदाय के पैदा करने बाले महान पुरुष जरथ्रुस्त थे व संग ए अवेस्ता इस धर्म की प्रमुख पुस्तक थी तथा यहुदी धर्म को चलाने बाले थे हजरत मूसा जिन्हौने यहूदी धर्म चलाया तथा इनकी पुस्तक आज भी ओल्ड टेस्टामेंट के नाम से ईसाई धार्मिक ग्रंथ बाईविल का एक हिस्सा है।अब बात करें उन दो  स्वघोषित धर्मों की जिन्हौने स्वयं के पैदा होते ही सम्पूर्ण संसार में एक अजीव माहौल या अस्त व्यस्तता पैदा कर दी और आज भी धार्मिक रुप से कोई भी देश अपने आप को शांत महसूस नही कर रहा है।ये दो सम्प्रदाय हैं लगभग नही सही सही 2012 वर्ष पहले पैदा हुआ महान विचारक व चिंतक ईसा मसीह द्वारा चलाया गया ईसाई धर्म जिसकी पुस्तक है बाईविल।अपने पैदा होने के समय पर जिस सम्प्रदाय ने इतना महान त्याग किया कि स्वयं उसके प्रवर्तक ही सूली चढ़ा दिये गये हो समझ नही आता कि उसी सम्प्रदाय के सिद्धांत कैसे मानव को मानव से अलग करने के इस सिद्धांत पर उतारु हो गये कि यह प्रतिपादित करने लगे कि प्रभु का सच्चा पथ प्रदर्शक तो केवल यीशू ही है उसके अलावा अन्य रास्ते आपको भगवान तक नही पहुँचाते या तो आप खुद ही यीशु के वताऐ मार्ग पर चलो नही तो जबरन आपको इस मार्ग पर चलना पड़ेगा।
                   इनके इसी द्वंद ने माया,एजिटेक  आदि महान  सभ्यताऐं ही नही अपितु खुद आस्ट्रेलिया व अमेरिका कनाडा आदि की पुरातन सभ्यताऐं भी नष्ट हो गयीं अभी कुछ समय पहले पोप जान पाल भारत आये तो उन्हौने यह कहा कि जल्दी ही भारत को ईसाई राष्ट्र वना देगे और कहा कि 21 वीं सदी एशिया को ईसाईकरण करने की सदी है।आपने यह कैसे सोच लिया कि आप जिनका कि कुल 2012 वर्ष का कुल इतिहास  है।और अगर आपका अपना पुराना ज्ञान तुममें या तुम्हारे पुरखों में अगर था भी तो तुमने खुद अपने हाथों ही नष्ट  कर दिया एसे लोग भारत अर्थात  एशिया के उस देश को जिसका कि अपना गौरव पूर्ण इतिहास रहा है उसे नष्ट करने में मुस्लिम आक्रान्ताओं में होड़ सी लग गयी थी फिर भी वो अपने मंसूवों में कामयाब न हो सके फिर तुम्हारी ब्रिटिश सरकारों ने हमें काले अग्रेज बनाने के सैंकड़ो प्रयास कर लिए लैकिन तुम्हारे पूर्वज भी  इस देश  को  पूर्णतया ईसाई राष्ट्र वनाने में कामयाब नही हो पाये। अब तुम अपने उसी अज्ञान को ज्ञान मान उसी के बल पर फैलाने का सपना बनाकर क्या यह समझते हो कि भारत में मूर्ख बसते हैं जो उन्है ईसाइयत की शिक्षा दे लोगे।और अब तो हमारे आदिवासी भाइयों को भी तुम्हारी विषेली सेवा समझ आने लगी है।वो भा जो तुम्हारे या तुम जैसों के षडयन्त्रों में फँस गये थे अब लौट कर वापस या तो आ गये है या फिर वापस आने को वैसब्री से इंतजार देख रहै हैं।
               हाँ यह सही है कि हमने हर सम्प्रदाय को अपने देश में पनाह दी है चाहैं वो इस्लामी तूफान के समय फारस से आये अपने पारसी वंधु हों या तुम्हारी विषेली सेवा से बचने के लिए आए येरुशलम वासी यहूदी हो हमने तुम्हारे सहित सभी को मान दिया है।एक मुस्लिम सूफी को राजस्थान में बसाकर हमने खुद पर आकृमणों का क्रम शुरु करा लिया हो या फिर तुम्हारे भाईयों को व्यापार को मौका देकर खुद को गुलाम ही क्यों न बनवा लिया हो। किन्तु फिर भी तुम्हारा रोम, यूनान  आदि आज विश्व के नक्से पर नही है किन्तु् हम यू ही उसी तरह आज भी अपने नाम भारत को रखे हुए दुनिया में मौजूद हैं।
  हाँ तो यह बात हुयी ईसाई सम्प्रदाय की अब बात आती है सबसे बाद में पैदा हुए सम्प्रदाय इस्लाम की तो यह पैदा किया हजरत मौहम्मद सहाब ने औऱ उन्हौने एक धार्मिक किताब जिसका नाम कुरान है एक देवदूत या फरिस्ते से लिखबाई क्योकि वे पढ़े लिखे नही थे अतः अल्लाह के दिये उपदेशों को खुद नही लिख सकते थे अतः उन्हैं यह किताब फरिस्ते से लिखानी पढ़ी।आप इसी से यह समझ सकते हैं  कि यह सम्प्रदाय कितना महत्वपूर्ण है लेकिन ये ईसाईयों से भी ज्यादा कट्टरता से घोषणा करते है कि अगर आप हमारे सिद्धांतो को नही मानेगे तो दुनिया को दारुल ईस्लाम बनाने के लिए तुम्हारा सर ही कलम क्यों न करना पढ़े हम अवश्य करेंगे ।
            लैकिन हिन्दु को साम्प्रदाय बताने बाला कोई भी व्यक्ति यह बताए कि हिन्दु समाज किसने बनाया है।सब जानते हैं कि न तो हिन्दु का कोई पैगम्बर ही है न ही उसकी कोई एक पुस्तक ही है जिसे यह कहा जाए कि  यह हिन्दु की विशेष पुस्तक ही है।
कोई व्यक्ति भगवान की पूजा करता है कोई नही करता कोई आस्तिक है कोई नास्तिक कोई जगन्नाथ पुरी को मानता है तो कोई मथुरा वाले को मानता है कोई शिवजी का भक्त है तो दूसरा विष्णु जी का कोई सगुण ब्रह्म का उपासक है तो कोई निर्गुण ब्रह्म का कोई कबीर को मान कर कबीरपंथी  है तो कोई नानक को मानकर नानक पंथी लैकिन सब के सब हिन्दु हैं एक ही घर मे रहने वाला एक हनुमान भक्त है तो दूसरा कृष्ण का भक्त है तो तीसरा यह घोषणा कर देता है  कि प्रभु तो निराकार है लैकिन कहीं कोई झगड़ा नही सवका रास्ता अलग अलग किन्तु सबके दिमाग में प्रभु तक पहुँचने की चाहत है सब जानते है कि केवल  अच्छे कर्म करते हुए किसी भी मार्ग से पहुँचे भगवान हमें मिलेगा ही।तो बताओ किस आधार पर हिन्दु को आप सम्प्रदाय घोषित करते हो जो आर्य समाजी हैं वे भी हिन्दु हैं और जब तक सरकार ने अल्पसंख्यक आयोग को सक्रिय नही किया था तव तक सिक्ख,जैन व वौद्ध कबीरपंथी नानकपंथी सभी अपने आपको हिन्दु ही कहते आये हैं।दुर्भाग्य का विषय है कि हमारी अपनी सरकारे ही अपने देश व समाज के साथ दुश्मनी का व्यवहार करके हिन्दु समाज को धर्म के स्थान पर सम्प्रदाय घोषित कर रही हैं
और अब तो एक नया षडयंत्र चल रहा है भारत की जातीय गणना कराकर भारत के लोगों को और भी अधिक  बाँटने का नया प्रयास चल रहा है जो सफल होता दिख रहा है जिसका निर्णय सोनिया गाँधी द्वारा शासित कांग्रेस नीत मनमोहन सरकार का भारत तोड़ो अभियान के अन्तर्गत चल रहा निर्णय है।








Tuesday, October 9, 2012

"वन्दे मातरम्" गीत में विवाद की बात कहाँ है?



राष्ट्र कवि बंकिम चन्द्र चटर्जी ने यह गीत भारतीय समाज को एकजुट करने के उद्देश्य से लिखा था।जिसका भावार्थ निम्न है।यह गीत जिसके प्रारम्भिक शब्दों पर भारत की स्वाधीनता का युद्ध लड़ा गया और  निश्चित जीत भी प्राप्त की गयी उसी गीत का स्वाधीन भारत और उसके नीति नियंताओ द्वारा बारम्बार कहा जाना कि अगर कोई इस गीत को गाना चाहे तो गाये न गाना चाहे तो कोई बात नही कोई अच्छी बात नही है हो सकता है कल कोई सरकार यह भी  घोषणा कर दे कि भाई तुम भारतीय ध्वज लहराना चाहो तो लहराओ नही तो जो अच्छा लगे उसे लहरा लो।
            मैने इस कारण से कि आखिर वन्देमातरम में एसी कौन सी बात है जिस पर हाय तौवा होती है क्या अन्य लोग अपनी माँ को माँ नही मानते और पिता को पिता नही मानने वो हमे भोजन पानी हमारा भरण पोषण व हमारी सुरक्षा का ही तो कार्य करते है और सम्मिलित रुप से क्या यही कार्य हमारा देश नही करता अगर नही तो फिर आप इस देश में रहने के हकदार नही है क्योंकि जब आपका पेट यहाँ के भोजन से नही भरता यहाँ की वायु आपको नही जिलाती तो फिर क्यों इस देश में रहते हो चले जाओ वहाँ जहाँ से तुम्हे सब साधन प्राप्त होते हैं अगर हाँ तो फिर इस बात को मानो कि वन्दे मातरम सही है और उसे गाओ।

 वंदे मातरम्।सुजलां सुफलां मलयज् शीतलाम्शस्यश्यामलां मातरम्।शुभ्र ज्योत्सनां-पुलकित यामिनीम्,फुल्लकुसुमित-द्रुमदलशोभिनीम्,सुहासिनी सुमधुरभाषणीम्सुखदां वरदां मातरम्।।वन्दे मातरम्----------------सप्तकोटिकण्ठ कल कल निनाद कराले,द्विसप्तकोटि भुजैधृत खरकरवाले,अबला केनो माँ तुमि एतो बले!बहुबलधारिणीम् नमामि तारणीम् ,रिपुदलवारिणीम् मातरम्।। वन्दे मातरम्----------------तुमि विद्या,तुमि धर्म,तुमि हरि,तुमि कर्म,त्वं हि प्राणः शरीरे।बाहुते तुमि माँ शक्ति,हृदये तुमि माँ भक्ति,तोमारई प्रतिमा गड़ी मन्दिरे मन्दिरे।त्वं हि दुर्गा दशप्रहरण धारिणी,कमला कमल दल विहारिणी,वाणी विद्या दायनी नमामि त्वांनमामि कमलां,अमलां,अतुलाम्,सुजलां,सुफलां,मातरम्।।वन्दे मातरम्----------------श्यामलां,सरलां,सुस्मितां,भूषिताम्धरणी,भरणी मातरम्।।वन्दे मातरम्----------------

अर्थ- हे धरती माता, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।जहाँ स्वच्छ जल दायनी नदियाँ बहती हैं।जहाँ रसदार फलों से लदे वृक्ष हैं,चन्दन जैसी सुगंध से युक्त हवाऐं जहाँ बहती हैं।और जो धरती सघन धानों से भरी होने के कारण काली दिखाई देती है।एसी धरती माँ को मैं प्रणाम करता हूँ।
जहाँ रात्रि में श्वेत चाँदनी छिटक कर पुलकित होती है अर्थात जिस चाँदनी की उपस्थिति में यहाँ के रहने वाले पुलकित होते हैं।वहाँ खिले हुए पुष्प औऱ घने पत्तों वाले वृछ शोभायमान होते हैं।जो सुन्दर औऱ मधुरवाणी वोलने वाली हैं सदैव सुख देने वाली तथा वर देने वाली हैं ऐसी धरती माता मैं तुम्हैं प्रणाम करता हूँ।
यहाँ रहने वाले सत्तरकरोड़ कण्ठ जहाँ भारत रुपी नदी अर्थात तुझमें प्रसन्नता पूर्वक तेरी धारा के समान कलकल करते हुए रहते हैं तो कभी अपनी दोनो भुजाओं अर्थात 140 करोड़ हाथों मे तलवार लेकर माँ चण्डी के समान दुष्ट पर धावा बोलने को तैयार रहते हैं ऐसी माता तुझे कौन कहता है कि तू अबला है।अपार बल वाली माता मैं तुम्हैं प्रणाम करता हूँ।आप सभी दुखों से तारने वाली हैं।मुक्ति देने वाली माता है।शत्रुओं के समूह से लड़ने की शक्ति देने वाली माता मैं आपको वारम्बार प्रणाम करता हूँ।
तुम्ही विद्या की देवी सरस्वती हो, तुम्ही ईश्वर हो तुम्ही कर्म भी तुम ही हो,तुम ही शरीर में प्राण हो।
हे माँ!तुम ही भुजाओं की शक्ति व हृदय की भक्ति हो।
तुम्हारी ही प्रतिमा मन्दिर-2 में विराजमान है।तुम ही दशों भुजाओं मे खडग धारण किये दुर्गा माँ हो,तुम ही कमल की पंखुड़ियों पर विराजमान माता लक्ष्मी हो।तुम ही विद्या दान करने वाली माँ सरस्वती हो।मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
लक्ष्मी के समान,स्वच्छ,अतुलनीय बल धारण करने वाली माता मैं आपको प्रणाम करता हूँ।जहाँ स्वच्छ जल से युक्त नदियाँ बहती हैं,यहाँ की धरती फलदार वृक्षों से युक्त है।
हे माता! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
       सघन धान से युक्त श्यामल या काले रंग की,सरल,सुखद मुस्कान युक्त,आभूषण से सुसज्जित,सभी का भरण पोषण करने वाली माता मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
               हे धरती माता!मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने सच ही कहा है कि-

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,जीती जागती राष्ट्र माता है।जिसका मस्तक है हिमालय चोटी गोरीशंकर,कश्मीर किरीट है तथा पंजाब व बंगाल कंधे हैं। विन्ध्याचल पर्वत इसकी कमर है तो नर्मदा करघनी के समान इसको लपेटे हुऐ है।पूर्वी व पश्चिमी घाट दोनो इसकी जंघाऐं हैं।जबकि कन्याकुमारी के चरण हैं।सागर इसके पग पखारता है। पावस के काले काले मेघ इसके बालों जैसे हैं।जिसकी आरती कोई सामान्य मानव नही सूर्य व चन्द्र उतारते हैं।यह वन्दन की भूमि अभिनन्दन करने के योग्य है।मानो साक्षात माता दुर्गा ही माँ भारती का रुप लेकर विश्व को अपना दर्शन कराने के लिए भारत माँ के रुप में प्रकट हो गयी हों।इसलिए आज का धर्म, पूजा का मंत्र ,प्रार्थना हवन का तर्पण सब माँ भारती की पूजा होना चाहिए।इसका कंकर कंकर शंकर व इसका बिन्दु-2 गंगाजल है।